बीएचपी का कदम तांबा उद्योग के लिए घाटे का सौदा!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 7:03 AM IST

अगर बीएचपी बिलिटन अपने रास्ते बढ़ती रहती है तो वैसे भारतीय स्मेल्टर्स जो पूरी तरह से आयातित एमआईसी (मेटल इन कंसन्ट्रेट) पर निर्भर करते हैं के कमजोर मार्जिन में और अधिक कमी देखने को मिल सकती है।


विश्व के सबसे बड़े तांबे की खान, एस्कॉन्डिडा, के मालिक बीएचपी बिलिटन जापान के धातु निर्माताओं को नए अनुबंधों के लिए ट्रीटमेंट और शोधन शुल्कों (टीसीटीआर) शुल्कों में कमी करने के लिए दबाव बना रही है।

ऐसी खबर है कि बीएचपी ने 35 डॉलर प्रति टन टीसी के लिए और आरसी के लिए 3.5 डॉलर प्रति टन का प्रस्ताव किया है। इस प्रस्ताव में कंसन्ट्रेट की भविष्य की आपूर्ति के लिए जापानी उद्योग में प्रतिभागिता को शामिल नहीं किया गया है। हिंडाल्को, स्टरलाइट और हिंदुस्तान कॉपर के लिए चिंता की बात यह है कि टीसीआरसी की वर्तमान दर पहले से ही पिछले वर्ष की तुलना में 21 प्रतिशत कम है।

पिछले वर्ष टीसीआरसी की दर प्रति टन क्रमश: 60 डॉलर प्रति टन और 6 डॉलर प्रति टन थी। हिंदुस्तान कॉपर के लिए यह ज्यादा चिंता की बात नहीं है क्योंकि यह एक मात्र ऐसा उत्पादक है जिसे पर्याप्त मात्रा में एमआईसी अपनी आबध्द खानों से मिल जाती हैं। चीन, जो विश्व का सबसे बड़ा तांबा उत्पादक है, ने तय किया है कि वह बातचीत में हिस्सा लेने की बजाए  टीसीआरसी पर बीएचपी और जापान के बीच चल रही बातचीत के परिणाम आने तक इंतजार करेगा।

भारतीय तांबा उद्योग से जुड़े एक अधिकारी ने अनुमान लगाया है कि चीनी तांबा उद्योग एमआई के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। चीनी उद्योग को ऐसी आशा है कि जापान को बीएचपी द्वारा प्रस्तावित सौदे के मुकाबले बेहतर सौदा प्राप्त हो सकता है। पिछले कुछ वर्षों से टीसीआरसी में कमी आ रही है जबकि नए स्मेंल्टिंग और शोधन क्षमताओं में इजाफा हुआ है। कंसन्ट्रेट की   आपूर्ति में होती वृध्दि के बावजूद यह जरुरतों से मेल नहीं खाता है।

अगर हम चीन की ही बात करें तो वहां 6,00,000 टन तांबे की अतिरिक्त स्मेल्टिंग क्षमता और 7,00,000 टन तांबे की शोधन की अतिरिक्त क्षमता को जोड़ा गया है जिसका इस साल पूरा-पूरा इस्तेमाल किया जाना है। हमने देखा है कि बढ़ती घरेलू मांगों को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र के भारतीय उत्पादक, जिसमें झागाड़िया कॉपर भी शामिल है, अपनी स्मेल्टिंग क्षमताओं में बढ़ोतरी करते आए हैं।

देश में तांबे की खपत प्रति वर्ष 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, यह वृध्दि दर चीन के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर है। वास्तव में भारत ने इस वर्ष पहले ही शोधित तांबे की क्षमता बढ़ा कर 9,00,000 टन कर ली है जबकि अनुमानों के मुताबिक 5,00,000 टन तांबे का इस्तेमाल होना है। हिंदुस्तान कॉपर के चेयरमैन सतीश गुप्ता कहते हैं, ‘स्मेल्टर की जरुरतों का केवल चार प्रतिशत ही घरेलू कंसन्ट्रेट उत्पादन से प्राप्त हो पाता है।’

इसके परिणामस्वरुप पिछले वर्ष भारत को 27 लाख टन एमआईसी का आयात करना पड़ा था। वर्ष 2006-07 के मुकाबले 8 प्रतिशत अधिक 7,16,000 टन शोधित तांबे का उत्पादन किया गया था। 2.8 लाख टन तांबे का निर्यात किया गया था। गुप्ता कहते हैं कि भारत के 370 लाख टन सुनिश्चित तांबे के भंडार से हमें 44 लाख टन धातु मिलना चाहिए।

इसके अलावा 1,025 अरब टन टन तांबे के सांकेतिक भंडार भी हैं जिन्हें इस्तेमाल में लाया जाए तो 70 लाख टन धातु की प्राप्ति होनी चाहिए। विदेशी खनन समूह कोष के साथ-साथ अत्याधुनिक तकनीक लाने को तैयार हैं ताकि नए खानों का विकसित और पुराने खानों की दोबारा शुरुआत कर सकें। संसाधन और तकनीकों की सीमितता के कारण खानों के विकास और परिचालन को आउटसोर्स करना ज्यादा बेहतर है।

First Published : June 23, 2008 | 10:55 PM IST