महंगाई की आंच से देश को बचाने की केंद्र सरकार की जुगत के नतीजे भले ही कुछ भी निकलें, मगर आग बुझाने की इसी कवायद के चलते बिहार में मक्का जरूर जलने लगा है।
इसकी भड़कती आग का आलम यह है कि इसमें राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए राज्य का कोई छोटा-बड़ा राजनीतिक दल कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है। दूसरी ओर, राज्य में इस साल हुई मक्के की बंपर पैदावार को लेकर किसान इसे बेचने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
मक्के में लगी इस आग की वजह है, इसके निर्यात पर केंद्र द्वारा महंगाई की आग बुझाने के नाम पर हाल ही में लगाई गई पाबंदी। हालांकि मक्के को लेकर मची इस आपाधापी में सोमवार किसानों को थोड़ी राहत की खबर जरूर लेकर आया है, जिसके तहत बिहार सरकार ने राज्य में मक्के की खरीद के लिए नैफेड को अधिकृत कर दिया।
मगर यह ताजातरीन फैसला भी किसानों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होने जा रहा है। इसकी वजह यह है कि नैफेड के जरिए सरकार इसे महज 620 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद रही है जबकि इस समय इसका बाजार भाव 1000 रुपये प्रति क्विंटल है।
बहरहाल, राज्य के खाद्य आपूर्ति सचिव त्रिपुरारी शरण ने बिजनेस स्टैंडर्ड से हुई बातचीत में आदेश की पुष्टि करते हुए बताया कि नैफेड राज्य के सभी जिलों में मक्का क्रय के्रंद खोलने जा रही है। यह पूछने पर कि इस समय बाजार में मक्के का भाव 1,000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है, ऐसे में किसानों को बाजार मूल्य का महज 60 फीसदी ही क्यों अदा किया जा रहा है? शरण ने कहा कि राज्य सरकार एमसपी नहीं तय करती लिहाजा वह इसी कीमत पर किसानों से खरीदारी करने को मजबूर है।
कितना है मक्के का उत्पादन
अनुमान है कि इस साल राज्य में 17 लाख टन, देश के कुल उत्पादन का 10 फीसदी, मक्के का उत्पादन हुआ है। राज्य के कई जिलों से खबर मिली है कि मक्के की बंपर पैदावार होने और निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिए जाने से इसके भंडार बारिश में यूं ही बर्बाद हो रहे हैं। कठेला, भागलपुर के राकेश चौधरी का कहना है कि प्रतिबंध से पहले इसकी आपूर्ति कोलकाता और मुंबई को की जा रही थी। लेकिन प्रतिबंध के बाद महेशकूट और मानसी स्टेशनों पर मक्के की सैकड़ों बोरियां बर्बाद होने के लिए पड़ी हैं।
हर कोई कर रहा हितैषी का दावा
राज्य का हर राजनीतिक दल खुद को मक्का किसानों का हितैषी साबित करने की कवायद में जुटा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का दावा है कि मक्का किसानों की समस्या को सबसे पहले उन्होंने ही उठाया है। कुशवाहा के मुताबिक उनकी पार्टी के एक प्रतिनिधि मंडल ने केंद्रीय कृषि मंत्री और राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के सामने सबसे पहले इस मसले को उठाया।
इसके बाद मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। बकौल कुशवाहा पवार ने उन्हें आश्वस्त किया कि इस हफ्ते से एफसीआई राज्य में मक्के की खरीद शुरू कर देगी। लेकिन एफसीआई (पटना) में अतिरिक्त महाप्रबंधक ए.एस. सैफी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मक्के की खरीद के लिए अब तक उन्हें केंद्र से कोई आदेश नहीं मिला है।
क्या है मसला?
केंद्र ने महंगाई को थामने के लिए 3 जुलाई को मक्के के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। यह प्रतिबंध आगामी 15 अक्टूबर तक प्रभावी रहना है। लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री ने चंद रोज पहले ही पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से कहा कि राज्य में इस बार मक्के की बंपर पैदावार हुई है। इसलिए इस प्रतिबंध से राज्य के किसानों का उनकी फसल का वाजिब मूल्य नहीं मिल सकेगा। फसल की कम कीमत से किसानों के लिए जहां लागत निकालना दूभर हो जाएगा, वहीं भीषण महंगाई के बीच उनका जीना मुश्किल हो जाएगा। लिहाजा इस प्रतिबंध को हटा लेना चाहिए।