भारत में कपास का उत्पादन पिछले महीने की गई भविष्यवाणी से कम हो सकता है क्योंकि बारिश न होने के कारण इसके मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में पौधे लगाने में विलंब हुआ है।
इस कारण कपास की वैश्विक कीमतों में भी बढ़ोतरी हो रही है। कपास उत्पादन के मामले में भारत का स्थान विश्व में दूसरा है। देश में कपास के सबसे बड़े खरीदार कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक सुभाष ग्रोवर ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अक्टूबर से शुरू होने वाले साल में कुल मिला कर 315 लाख बेल्स का उत्पादन हो सकता है जो जून में लगाए गए 350 बेल्स के अनुमान से 10 प्रतिशत कम है।
कपास की कम खेती से इसके सबसे बड़े उत्पादक और इसके रेशे का उपयोग करने वाले देश चीन को किए जाने वाली आपूर्ति में कमी आ सकती है। पिछले साल न्यू यॉर्क में कपास के मूल्य में 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, कम उत्पादन से इसमें और अधिक इजाफा हो सकता है। भारतीय मौसम विभाग ने कल बताया कि इस महीने के तीसरे सप्ताह में देश में मॉनसूनी बारिश औसत से 33 प्रतिशत कम हुई है। ग्रोवर ने कल कहा, ‘निश्चित ही बारिश में हुए विलंब से कुछ क्षेत्रों में पौधे लगाने की रफ्तार कम होगी। हमारा मानना है कि जून महीने में पैदावार 10 प्रतिशत अधिक होगी।’
कल मौसम विभाग ने बताया कि कपास के मामले में देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र और गुजरात के आसपास के क्षेत्रों में 23 जुलाई तक बारिश औसत से 32 प्रतिशत कम हुई है। जुलाई मॉनसूनी बारिश का तीसरा महीना है और यह फसल की बुआई के लिए काफी महत्वपूर्ण है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, 18 जुलाई तक भारतीय किसानों ने 143 लाख एकड़ (58 लाख हेक्टेयर) में कपास की रोपाई की है जो पिछले साल के मुकाबले 17 प्रतिशत कम है।
ग्रोवर ने कहा कि रोपाई का क्षेत्र इस साल घट कर 90 लाख हेक्टेयर हो सकता है जो पिछले साल 95 लाख हेक्टेयर था। गुजरात के कृषि निदेशक एस आर चौधरी ने कल कहा था, ‘ अगर इस महीने के अंत तक बारिश नहीं हुई तो हमारे राज्य में लगी-लगाई फसल के लिए समस्या हो जाएगी।’