बासमती चावल से बेहतर भविष्य की आस रखने वाले किसानों को इसके निर्यात पर लेवी लगाने के निर्णय से करारा झटका लगा है।
वैश्विक बाजार में 53 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले बासमती चावल के कारोबार पर सरकार के इस कदम का नकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद जतायी जा रही है। एक अनुमान के अनुसार, सरकार के इस फैसले से बासमती पैदा करने वाले तकरीबन 8 लाख किसान बुरी तरह प्रभावित होंगे।
बासमती चावल पर अभी 8,000 रुपये प्रति टन का निर्यात लेवी लगाया गया है। अनुमान जताया जा रहा है कि इस कदम से इसके उत्पादकों को प्रति एकड़ 12,800 रुपये का नुकसान हो सकता है। कारोबारियों के अनुसार, पिछले दो सालों में किसानों की औसत आय दोगुनी हो गयी है। 2005 में यह जहां 18,500 रुपये प्रति एकड़ थी, वहीं 2007 में यह बढ़कर 36,500 रुपये प्रति एकड़ हो गयी।
अंदाजा लगाया जा रहा था कि बासमती उत्पादको की आय में हो रही वृद्धि इस साल भी जारी रहेगी क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके दाम इस साल काफी ऊंचे हैं। बासमती चावल उत्पादक और निर्यातक विकास मंच के मुख्य सलाहकार अनिल मित्तल का कहना है कि सरकार ने लेवी लगाकर किसानों की आय को सीमित कर दिया है। अब इस अतिरिक्त लेवी के चलते बासमती के कारोबार से किसानों को मिलने वाले फायदे कम हो गए हैं।
सरकार ने बासमती चावल के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए इसका न्यूनतम निर्यात मूल्य 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 1,000 डॉलर कर दिया है। चावल निर्यात संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया के मुताबिक, हमने सरकार से अनुरोध किया है कि बासमती के न्यूनतम निर्यात मूल्य को 1,200 डॉलर प्रति टन के स्तर पर लाया जाएऔर इस पर लगाए गए अतिरिक्त निर्यात शुल्क को खत्म किया जाए।