महंगाई को काबू करने के लिए सरकार ने स्टील उत्पादों पर जो निर्यात शुल्क लगाया है उससे घरेलू स्तर पर स्टील अधिक आपूर्ति की स्थिति पैदा हो सकती है।
दरअसल सरकार ने प्राथमिक स्टील उत्पादों के निर्यात पर जो 15 फीसदी का शुल्क लगाया है, उससे घरेलू बाजार में हॉट रॉल्ड (एचआर) ज्यादा मात्रा में उपलब्ध हो पाएगा।इसके चलते कोल्ड रॉल्ड (सीआर) और गैल्वेनाइज्ड उत्पादों को बनाने की प्रक्रि या में बीच में जो हॉट रॉल्ड काम आता है। वो इस स्थिति को ज्यादा भड़का देगा।
अब स्टील उत्पादकों को बढ़े हुए निर्यात शुल्क को झेलकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर स्टील बेचना होगा या फिर निर्यात का मोह छोड़कर घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ाकर लागत में बढोतरी की भरपाई करनी होगी। एक बड़े स्टील उत्पादक ने कहा है कि हमने अभी नोटिफिकेशन नहीं देखा है, उसके बाद ही हम कुछ कह पाएंगे।
एस्सार स्टील होल्डिंग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जे मेहरा कहते हैं कि इस कदम के व्यापक प्रभाव पड़ेंगे। उनका कहना है कि सरकार को क्षमता बढ़ाने के लिए सुविधाएं बढ़ानी चाहिए क्योंकि उत्पादन को बढ़ाना समय की सबसे बड़ी जरूरत है। मेहरा ने कहा कि कि स्टील उद्योग ने इस बाबत कई बार सरकार को इशारा किया है लेकिन उसका कोई फर्क नहीं पड़ा है।
उद्योग के सूत्रों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्टील की कीमतों में औसतन 100 से 200 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि देश में महंगाई को रोकने के लिए हॉट रॉल्ड की कीमतें 35,000 रुपये प्रति टन हैं।
देश से अप्रैल 2007 से फरवरी 2008 के बीच 42 लाख टन स्टील का निर्यात किया गया। जिसमें 18.5 लाख टन गैल्वेनाइज्ड स्टील, 4.7 लाख टन कोल्ड रॉड, 14.1 लाख टन हॉट रॉड और 2,35,000 टन अन्य स्टील उत्पादों का निर्यात किया गया। यह निर्यात 26,000 करोड़ रुपये का हुआ।
इस्पात इंडस्ट्रीज के कार्यकारी निदेशक (वित्त) अनिल सुरेका कहते हैं कि निर्यात पर शुल्क लगाने और आयात शुल्क को हटाने का मतलब है कि उद्योग की रफ्तार सुस्त पड़ जाएगी। उन्होंने कहा कि कच्चे माल पर शुल्क हटाने से लागत में कमी आएगी।सुरेका ने बताया कि अधिकतर स्टील कंपनियां पूंजीगत वस्तुओं का आयात ईपीसीजी नियमों के तहत ही करती हैं और इसके तहत निर्यात बाधाओं से छूट मिलती है।
उनका कहना है कि निर्यात कर की वजह से निर्यात के ऑर्डर पूरे करने में मुश्किल आ सकती है। इससे गैल्वेनाइज्ड स्टील उत्पादकों के सबसे अधिक प्रभावित होने की उम्मीद है। इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि देश में तकरीबन 60 लाख टन उत्पादन की क्षमता है और मांग केवल 15 लाख टन की है।