महंगाई पर अंकुश की कवायद के तहत सरकार की ओर से गैर-बासमती चावल, सीमेंट, खाद्य तेल और गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से निर्यातकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
इसकी वजह से एक साल के दौरान भारतीय निर्यातकों को तकरीबन 5,788 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है। इसके साथ ही खाद्यान्न की आपूर्ति नहीं कर पाने की वजह से निर्यातकों की साख पर भी असर पड़ रहा है।
केआरबीएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अनिल मित्तल का कहना है कि पश्चिम एशियाई देशों में भारतीय गैर-बासमती चावल की तकरीबन 350,000 टन की मांग है, लेकिन निर्यात पर पाबंदी लगने से वहां के खरीदार अब थाईलैंड और अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006-07 में भारत से 3.7 मिलियन टन गैर-बासमती चावल का निर्यात किया गया था, जिससे निर्यातकों को 4,243 करोड़ रुपये की आय हुई थी। कोहिनूर फूड्स लिमिटेड के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा का कहना है कि कंपनी दक्षिण अफ्रीका को सालाना 50,000 टन गैर-बासमती चावल का निर्यात करती है, लेकिन निर्यात पर पाबंदी से खरीदार अब थाईलैंड और अन्य देशों से चावल खरीद रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि जब निर्यात से पाबंदी हटाई जाएगी, तब कंपनी को फिर से साख कायम करने में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। अंबुजा सीमेंट के प्रबंध निदेशक ए. एल. कपूर ने बताया कि भारत से पश्चिम एशियाई देशों को सालाना 60 लाख टन सीमेंट का निर्यात किया जाता है, लेकिन निर्यात पर पाबंदी से पाकिस्तान समेत अन्य देशों के निर्यातक फायदा उठा रहे हैं।
अदानी विलमर के प्रबंध निदेशक प्रणव अदानी का कहना है कि भारत से पश्चिम एशियाई देशों को बहुत कम मात्रा में खाद्य तेलों का निर्यात किया जाता है, लेकिन इसके निर्यात पर भी पाबंदी लगा देने से निर्यातकों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। शक्ति भोग के प्रबंध निदेशक के. के. कुमार का कहना है कि निर्यात पर प्रतिबंध से कंपनी को परेशानी हो रही है।
बड़ा दुख दीना
गैर-बासमती चावल, गेहूं, सीमेंट और खाद्य तेल के निर्यात पर पाबंदी से निर्यातकों को 5,788 करोड़ रुपये का नुकसान
प्रतिद्वंद्वी देशों के निर्यातकों को हो रहा इससे फायदा