देश के फाउंड्री उत्पाद निर्यातकों ने बाजार द्वारा संचालित होने वाली नई कीमत प्रणाली को अपनाने का फैसला किया है।
इस नई प्रणाली में विचाराधीन सौदों के आधार मूल्य पर प्रभावी होने वाले ऊर्जा और अयस्क अधिभार जैसे अस्थिर पैमानों को शामिल किया गया है। तेल की रेकॉर्ड कीमत और मुद्राओं में हो रहे उतार-चढ़ाव से पैदा हो रही चुनौतियों से निपटने के लिए फाउंड्री उत्पादक नई मूल्य प्रणाली को अपना रहे हैं।
ये महत्वपूर्ण है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और पिछले एक साल में रुपये की तुलना में डॉलर के 10 फीसदी मजबूत होने से लंबी अवधि के सौदों में निर्यातकों को काफी ज्यादा नुकसान उठाना पडा है। हालांकि पिछले पखवाड़े इनमें कमी आने से निर्यातकों को अब तक हुए नुकसान की थोड़ी क्षतिपूर्ति हुई है।
मालूम हो कि लगभग 30 से 40 बड़ी फाउंड्रियां 1 अरब डॉलर के प्रमुख उत्पादों का निर्यात करती हैं। इनके आयातकों में यूरोपीय ओरिजनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर्स (ओईएम) प्रमुख हैं। इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ फाउंड्रीमेन (आईआईएफ) के निदेशक ए.के.आनंद के अनुसार, फाउंड्री उत्पादों की लागत बढ़ाने में तेल की बढ़ी कीमतों की उतनी भूमिका नहीं है जितना कि मुद्राओं में आने वाले उतार-चढाव का। मुद्राओं में आने-वाले परिवर्तन से इन कंपनियों के मुनाफे पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है।
देश की लघु और मध्यम आकार वाली फाउंड्रियों के सामने इस समय अपना अस्तित्व बचाए रखने की चुनौती है। हालांकि मध्यम आकार वाली फाउंड्रियां कुछ समय तो टिकी भी रह सकती हैं पर छोटी फाउंड्रियों के लिए तो निश्चित तौर पर खतरा मंडरा रहा है। इनके पास उत्पादों को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए कोई भंडारगृह नहीं है। अस्तित्व बनाए रखने के लिए इन्हें अपने उत्पादों को बेचना ही पड़ता है।
देश में लगभग 4,500 फाउंड्रियां हैं। इनमें से 70 फीसदी छोटे और मध्यम आकार की हैं और ये कुल उत्पादन का 30 फीसदी बनाते हैं। जबकि शेष 30 फीसदी बड़े और तकनीकी रूप से उन्नत फाउंड्रियां कुल फाउंड्री उत्पाद का 70 फीसदी उत्पादन करते हैं। उल्लेखनीय है कि 200 टन प्रति माह का उत्पादन करने वाली इकाइयों को लघु फाउंड्री की श्रेणी में रखा जाता है।
वहीं बड़ी इकाइयों में उन्हें रखा जाता है जो प्रति माह 3,000 टन से ज्यादा का उत्पादन करते हैं। देश में केवल 35 से 40 ऐसी बड़ी इकाइयां ही हैं। पूंजी की कमी भी इस क्षेत्र के लिए बड़ी समस्या है। स्टार वायर इंडिया के कार्यकारी निदेशक एस.के.गोयल ने बताया कि इस सेक्टर को तकनीकी रूप से उन्नत बनाने के लिए काफी बड़े निवेश की जरूरत है। उनके अनुसार, छोटी इकाइयों के समक्ष तो अस्तित्व का खतरा है।
उन्हें या तो अपनी इकाइयों को बंद करना पड़ेगा या इस कारोबार को ही परिवर्तित करना पड़ेगा। गोयल के मुताबिक, इस सेक्टर के लिए राहत की बात हो सकती है कि छोटी फाउंड्रियों का विलय बड़ी कंपनियों में हो जाए, नहीं तो कई छोटी इकाइयां ही आपस में जुड़कर अपना आकार बढा ले। इनके लिए राहत की बात है कि अभी से ही कई इकाइयां खाद्य तेल और दूसरे तरह के कारोबार की ओर अपना रुख करने लगी हैं।
गुड़गांव की लेंको आयरन ऐंड स्टील ने पहले ही अपनी इकाई बंद कर दी है। उसने सरसों और मूंगफली की पेराई की ओर अपना कदम बढ़ा लिया है। यही नहीं लंबी अवधि के सौदों में जोखिम काफी होता है। इसलिए इन इकाइयों की कोशिश होती है कि उत्पादों को काउंटर पर ही बेच दिया जाए। हिंदुजा फाउंड्रीज के प्रबंध निदेशक और आईआईएफ के अध्यक्ष वी.महादेवन ने कहा कि आने वाले महीनों में फाउंड्री सेक्टर के लिए उपयोगी स्क्रैप का काफी बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने की संभावना है।