देश में सबसे बढ़िया गेहूं की किस्म पैदा करने वाले किसानों की किस्मत में राज्य सरकार अड़चन बन गई है।
देश भर में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने ज्यादा अक्लमंदी दिखाते हुए राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 100 रुपये बोनस की घोषणा की है। निजी कंपनियां, व्यापारी अब राज्य का गेहूं खरीदना घाटे का सौदा समझ रहे हैं।
यहां तक कि अधिक प्रोटीन वाला उम्दा किस्म का शरबती गेहूं उगाने वाले सीहोर और आप्टा के किसान मंडियों से अच्छा भाव न मिलने के कारण निराश लौट रहे हैं। राज्य के मंडी सूत्रों के अनुसार बोनस किसानों के लिए मुसीबत बन गया है।
एक उच्च पदस्थ मंडी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि,’एक अप्रैल से आठ अप्रैल के बीच राज्य में महज 35 लाख क्विंटल गेहूं ही खरीदा जा सका जो इसी दौरान पिछले साल 60 लाख क्विंटल से एक करोड़ क्विंटल के बीच था।’राज्य में मंडियों से बाहर भी जिंस खरीदने की निजी कंपनियों को अनुमति मिली हुई है।
लेकिन इस साल लगभग 300 गांवों में अपने 52 ई चौपालों के जरिये गेहूं खरीदने वाली देश की एफएमसीजी कंपनी आई टी सी ने अपने रफीकगंज (सीहोर) केंद्र पर 12 अप्रैल से ‘मिल वेराइटी’ (जिसे लोक 1 के नाम से भी जाना जाता है)वाले गेहूं की खरीद बंद कर दी है। इसका अधिकतम भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से महज एक रुपया प्रति क्विंटल ही अधिक है।
जबकि 2 अप्रैल को मिल वेराइटी गेहूं 1700 रुपये प्रति क्विंटल तक बिका। सीहोर जिले के नसरुल्लागंज के एक किसान राकेश कुमार वर्मा ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि मंडी में कोई भी गेहूं को 1100 रुपये प्रति क्विंटल में भी खरीदने को तैयार नहीं है जबकि आई टी सी एक रुपया प्रति क्विंटल तक अधिक देने को तैयार है।
वर्मा बताते हैं कि हमारा यह गेहूं पिछले साल 1800 रुपये प्रति क्विंटल में बिका था। मजबूरीवश मुझे दोनों जगह से खाली हाथ लौटना पड़ा है। अब जब सही भाव मिलेंगे तब ही मैं मंडी या फिर आई टी सी चौपाल का रुख करुंगा। लेकिन सभी किसान राकेश की तरह निश्चिंत नहीं हैं। भाऊखेड़ी गांव के 55 वर्षीय किसान मुन्नालाल बताते हैं कि सारी फसल पाले से बर्बाद हो गई है।
उनको इस बात की भी चिंता सता रही है कि कैसे महज 11,000 हजार रुपये में पूरे साल का खर्च चलेगा? उन्होंने केवल 1100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से गेहूं बेच दिया। इस साल चने की पैदावार से भी किसानों को कुछ हासिल नहीं हुआ। आई टी सी ने गेहूं खरीदने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उसमें चमक नहीं है।
अब क्या करें कहीं मजदूरी करेंगे…..किसी से गुहार तो नहीं करेंगे….सुनेगा कौन? मुन्नालाल ही नहीं इलाके के अधिकतर किसानों के हालात कुछ इसी तरह के हैं। राज्य सरकार के अधिकारियों और राज्य के मुखिया को को इस बात की कोई फिक्र नहीं है कि उनकी चुनावी घोषणा ने किसानों को किस मुसीबत में डाल दिया है।
स्थानीय अखबारों में इस घोषणा के विज्ञापन भरे पड़े हैं। मंडी बोर्ड के अधिकारी ने इस समस्या की जड़ में राज्य से बाहर भेजे जाने वाले गेहूं को दोषी बताया। उनके मुताबिक,’राज्य में कई निजी कंपनियां किसानों से सीधे ही लगभग 20 लाख टन गेहूं खरीदती हैं। वहीं दूसरी ओर व्यापारी भी लगभग इतनी ही मात्रा में लोक-1 और अन्य किस्मों के गेहूं खरीदते हैं जिनकी गुजरात, मुंबई, राजस्थान में काफी मांग है और यह कई देशों को निर्यात भी किया जाता है।