चावल निर्यात पर सरकार सख्त, पर किसान त्रस्त

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 06, 2022 | 9:44 PM IST

अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ (ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट असोसिएशन) के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा है कि बासमती चावल के निर्यात में जो बाधाएं आ रही हैं, उससे आखिरकार किसानों का ही नुकसान हो रहा है।


चावल के कुल 9.56 करोड़ टन उत्पादन में केवल 20 लाख टन बासमती चावल का उत्पादन होता है। बासमती चावल की घरेलू स्तर पर मांग बहुत कम है, ऐसे में इस पर 800 रुपये प्रति क्विंटल की डयूटी लगाना किसी के भी हित में नहीं है। सेतिया के अनुसार भारतीय निर्यातक हर साल खाड़ी देशों, यूरोप और अमेरिका को तकरीबन 4000 करोड़ रुपये के चावल का निर्यात करते हैं।


उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से किसानों को 2000 से 2800 रुपये प्रति क्विंटल तक अपनी फसल की कीमत मिली है, इसमें चावल के निर्यात की काफी भूमिका है। ऐसे में चावल के निर्यात से इन किसानों की वित्तीय स्थिति में मजबूती आई है। चावल निर्यात में बाधा से इन किसानों का इस बेहद संभावना वाली फसल से मोहभंग भी हो सकता है। उनका यह भी कहना है कि हरियाण में चावल की कांट्रैक्ट खेती में बहुत बढ़िया संभावनाएं हैं।


उनकी यह भी मांग है कि चावल की पूसा 1121 किस्म को बासमती चावल के रूप में मान्यता दी जाए जिससे इसको निर्यात करके बेहतर लाभ अर्जित किया जा सके। इस बाबत कृषि मंत्रालय में बात चल रही है। इस मौके पर अमृतसर के सांसद और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू भी मौजूद थे। सिद्धू ने कहा कि कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कीमत सूचकांक के साथ जोड़ा जाए। किसानों की खरीदने की शक्ति घट रही है।

First Published : May 6, 2008 | 11:43 PM IST