सरकार के आग्रह पर तीन महीने तक कीमतें न बढ़ाने वाली इस्पात कंपनियां 7 अगस्त के बाद इस्पात की कीमतों में वृद्धि कर सकती हैं।
ऐसा इसलिए भी कि सरकार ने बुधवार को स्पष्ट कर दिया कि वह इस्पात की कीमतें नियंत्रित करने की इच्छुक नहीं है। गौरतलब है कि महंगाई से चिंतित सरकार के अनुरोध और 7 मई को प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद इस्पात कंपनियों ने कीमतों में 4,000 रुपये प्रति टन की कटौती की घोषणा की थी। इन कंपनियों ने सरकार से वादा किया था कि अगले तीन महीनों तक कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की जाएगी।
फिक्की और इस्पात मंत्रालय द्वारा बुधवार को इंडियन स्टील कनक्लेव में संयुक्त रूप से आयोजित समारोह में इस्पात मंत्री रामविलास पासवान ने कहा कि सरकार कीमतों को लेकर हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है। क्योंकि हम नहीं चाहते कि ये कंपनियां नुकसान उठायें। उन्होंने बताया कि सरकार का यह देखना काम है कि कंपनियां इस्पात की कीमतों में मनमानी बढ़ोतरी न कर पाएं। यदि बढ़ोतरी हो भी तो लागत में होने वाली बढ़त के अनुपात में ही हो ताकि उपभोक्ताओं को ज्यादा तकलीफ न पहुंचे।
पासवान ने कहा कि सरकार को पता चला है कि कुछ डीलर बढ़ी मांग का फायदा उठाते हुए तय बाजार भाव से ज्यादा कीमत पर इसे बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसे मामलों को गंभीरता से ले रही है। सरकार पहले ही सार्वजनिक स्टील कंपनियों को ऐसे मामलों को रोकने और निगरानी का आदेश दे चुकी है। मंत्री ने कहा कि वे इसी तरह का अनुरोध निजी क्षेत्र के इस्पात उत्पादकों से भी कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जनवरी से अब तक इस्पात की कीमतों में 40 से 50 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।
ऐसा लौह अयस्क, कोयले और माल भाड़े में बढ़ोतरी के चलते हुआ है। निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी इस्पात कंपनी टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक बी. मुत्थुरमन का कहना था कि कच्चे माल की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के साथ ही मांग में जबरदस्त तेजी आने के कारण इस्पात की कीमतें मौजूदा स्तर तक पहुंची है। मुत्थुरमन ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि उत्पादकों द्वारा कीमतों में 4,000 रुपये प्रति टन की कटौती करने के बावजूद संवर्द्धन और विपणन इकाइयों ने कीमतों मे कोई कटौती नहीं की। इससे यह हुआ कि उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले उत्पाद की कीमतें, जिससे महंगाई दर प्रभावित होती है, में तनिक भी कमी नहीं हुई।
मुत्थुरमन ने बताया कि इस समय इस्पात की अंतरराष्ट्रीय कीमत इसकी घरेलू कीमत से कहीं ज्यादा है। जिससे इस्पात उद्योग खुद को असहज स्थिति में पा रहा है। इस समय आयातित इस्पात की कीमत 15,000 से 20,000 रुपये प्रति टन से कहीं ज्यादा है। ऐसे में सरकार से बेहतर नीति की दरकार है।