भारतीय रिफायनरी पर कच्चे तेल की भारी मार

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:19 PM IST

भारतीय रिफायनरी पर एक बार फिर कच्चे तेल की मार पड़ी है। भारतीय रिफायनरी का बास्केट प्राइस गुरुवार को अब तक के सर्वोच्च स्तर 104.41 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।


इससे पहले इस साल 14 मार्च को यह अधिकतम 103.80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचा था। गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी। शुक्रवार को कच्चा तेल 110 डॉलर के आसपास रहा।


अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले हफ्ते कच्चे तेल की कीमत में 4 डॉलर प्रति बैरल का उछाल उस समय आया जब अमेरिका में कच्चे तेल व ईंधन के स्टॉक में कमी की खबर फैली। इससे भी भारतीय रिफायनरी के बास्केट प्राइस पर असर पड़ा क्योंकि भारत ओमान-दुबई से उच्चसल्फर वाला और कम सल्फरवाला कच्चा तेल 61.4:38.6 के अनुपात में खरीदता है।


पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक वहां इस हफ्ते इसकी कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा थी। अगर अप्रैल महीने के लिए भारतीय रिफायनरी के बास्केट प्राइस के औसत की बात की जाए तो यह अब तक 100.40 डॉलर पर रहा है। मार्च में इसका औसत 99.76 डॉलर प्रति बैरल था जबकि फरवरी में 92.37 डॉलर।


कच्चे तेल में आए उफान के चलते भारत की सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों को रोजाना 440 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है क्योंकि ये कंपनियां कम कीमत (सब्सिडाइज्ड रेट) पर डीजल, पेट्रोल, केरोसिन और एलपीजी बेचती हैं।


वित्त वर्ष 2007-08 में तीनों कंपनियों इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का कुल नुकसान 78 हजार करोड़ रुपये का रहा। अगर भारत में पेट्रोल-डीजल आदि की कीमत नहीं बढ़ाई गई और कच्चे तेल में उफान इसी तरह जारी रहा तो इस वित्त वर्ष यानी 2008-09 में इन कंपनियों का घाटा 1.30 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच सकता है।


सरकार ने हालांकि फरवरी में कहा था कि इन कंपनियों को होने वाले नुकसान का 57 फीसदी हिस्सा सरकार खुद वहन करेंगी और इसके लिए बॉन्ड जारी किए जाएंगे।हालांकि अब तक यह फैसला नहीं हो पाया है कि कितने बॉन्ड जारी किए जाएंगे। तेल मार्केटिंग कंपनियों का कहना है कि सरकार हमारे घाटे का 42.7 फीसदी हिस्सा वहन करने का पुराना वादा पूरा करे न कि 57 फीसदी का और इसके लिए बॉन्ड जारी करे।

First Published : April 12, 2008 | 12:30 AM IST