अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे (यूएसजीएस) के परिणामों पर सर्वसम्मति है कि तांबे का वैश्विक इस्तेमाल 3.1 प्रतिशत की वर्षिक दर से बढ़ते हुए साल 2020 तक 270 लाख टन हो जाएगा।
लेकिन तांबे की मांग में वृध्दि, अन्य आधारभूत धातुओं की तरह, मुख्यत: चीन और भारत जैसे देशों के कारण होगी। विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में तांबे की खपत में आई तेजी में कुछ समय से शिथिलता आ रही है। अमेरिका में घर-मकानों के निर्माण में आई मंदी से तांबे की खपत भी प्रभावित हुई है।
यूएसजीएस का कहना है कि वर्ष 2020 तक अमेरिका में तांबे का इस्तेमाल 5 लाख टन बढ़कर 35 लाख टन हो जाएगा और जापान में इसके इस्तेमाल में एक लाख टन की वृध्दि होगी और यह राष्ट्र कुल 14 लाख टन तांबे का इस्तेमाल करेगा। जबकि चीन की मांग में इस अवधि में 20 लाख टन का इजाफा हो सकता है और यह बढ़कर 56 लाख टन हो सकता है दूसरी तरफ भारत में तांबे के इस्तेमाल में 4 लाख टन की बढ़ोतरी हो सकती है जिससे कुल इस्तेमाल 16 लाख टन हो सकता है।
हिंदुस्तान कॉपर के चेयरमैन सतीश गुप्ता कहते हैं कि 11वीं पंचवर्षीय योजना में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 1,50,000 करोड़ रुपये का निवेश, ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास और भवन-निर्माण में तांबे की बढ़ती जरुरत से पश्चिमी देशों की तरह ही अगले कुछ वर्षों में इस धातु के इस्तेमाल में प्रति वर्ष 7-8 प्रतिशत की वृध्दि देखी जा सकती है।
चीन की कहानी थोड़ी अलग है। पिछले वर्ष चीन के तांबे के इस्तेमाल में 19 प्रतिशत की वृध्दि हुई। हालांकि, लंदन स्थित शोध संस्थान सीआरयू के अनुसार इस वर्ष चीन में तांबे की मांग-वृध्दि घट कर एक अंक में आ जाएगी।
हालांकि, चीन के मामले में यही बातें अन्य धातुओं पर भी लागू होती हैं क्योंकि नौ वर्षों में सबसे अधिक ब्याज दरों के कारण मांग में कमी आ रही है। अगर चीन के तांबे की मांग-दर 10 प्रतिशत की दर से भी बढ़ती है तो यह वैश्विक दर से तीन गुनी अधिक होगी।
भारत ने 10 लाख टन परिष्कृत तांबे के उत्पादन की क्षमता हिंडाल्कों और स्टरलाइट की बदौलत हासिल कर ली है। लेकिन जैसा कि गुप्ता ने कहा कि भारतीय तांबा उद्योग को परिष्कृत तांबे के उत्पादन के लिए मात्र 32,000 टन शुध्द धातु (एमआईसी) हिंदुस्तान कॉपर उपलब्ध कराता है, यहां के स्मेल्टर्स को परिष्कृत तांबा के उत्पादन के लिए एमआईसी के आयात पर निर्भर रहने के अलावा कोई चारा नहीं है।
हिंदुस्तान कॉपर, जो अयस्क के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए अपने बंद पड़े खानों को फिर से चालू करने और नये खानों के लिए योजना बना रहा है, को पिछले वर्ष 54,398 टन एमआईसी का आयात करना पड़ा था ताकि यह अपनी स्मेल्टर की क्षमताओं का पूर्णत: इस्तेमाल कर पाए।
दक्षिण अमेरिकी और अफ्रीकी देशों के खानों को हड़ताल या दुर्घटनाओं की वजह से पहुंचने वाले व्यवधानों से एमआईसी की आपूर्ति में कमी आई है। इस प्रक्रिया में हिंडाल्को और स्टरलाइट के स्टैंडअलोन ट्रीटमेंट और परिष्करण (टीसीआरसी)के शुल्कों में क्रमश: कमी आ रही है।
सीआरयू ने भविष्यवाणी की है कि इस वर्ष वैश्विक तांबा उत्पादन में 2 लाख टन की कमी आएगी। इसके अतिरिक्त लंदन, शांघाई और न्यू यॉर्क एक्सचेंजों द्वारा ट्रैक की गई तांबा का भंडार पिछले वर्ष के औसत वैश्विक खपत 4.9 दिनों की तुलना में घट कर 3.5 दिन रह गया है। इस नजरिये से देखा जाए तो टीसीआरसी मार्जिन काफी कम रह गया है। स्टैंडअलोन स्मेल्टर्स के लिए राहत की बात है कि सह-उत्पाद स्ल्फ्यूरिक अम्ल के मूल्यों में अच्छी वृध्दि हुई है।
इसलिए हिंदुस्तान कॉपर, जिसने झारखंड के सुरदा खान के पुनरुत्थान और परिचालन की जिम्मेदारी ऑस्ट्रेलियाई समूह की मोनार्क गोल्ड माइनिंग को सौपी थी, को राजस्थान के बनवास में जमा लगभग 250 लाख टन अयस्क के कर्षण तथा इससे संबंधित कन्सिन्ट्रेटर संयंत्र चलाने के लिए बाहरी एजेंसी का सहारा लेने में सरकारी सहायता मिलनी चाहिए।
भारतीय मानकों के हिसाब से बनवास अयस्क में 1.69 प्रतिशत तांबा तत्व होता है।सुरदा में 260 लाख टन अयस्क का भंडार है जिसमें तांबा तत्व मात्र 1.2 प्रतिशत है। बनवास, जिसके विकास में 500 करोड़ रुपये खर्च होंगे, और सुरदा में पूरे इस्तेमाल के लिए एमआईसी का उत्पादन 19,000 टन होगा। लेकिन हिंदुस्तान कॉपर को खनन आउटसोर्सिंग के लिए सरकारी सहायता कि जरुरत होगी क्योंकि यूनियन इस आयडिया को लेकर संतुष्ट नहीं हैं।
खानों को किराये पर पाने के आवेदन की मंजूरी के लिए भी इसे सरकार का समर्थन चाहिए। चापरी सिदेश्वर के 800 लाख टन के भंडार के लिए कंपनी का आवेदन लंबी अवधि से झारखंड सरकार के पास पड़ा है। गुप्ता ने कहा कि चापरी सिदेश्वर में सर्वोत्तम खनन कार्यप्रणाली और मशीनों के लिए कंपनी एक अग्रणी खनन कारोबारी के साथ संयुक्त उद्यम का प्रस्ताव कर रहा है। हिंदुस्तान कॉपर का भविष्य खनन के विस्तार और तांबे के उत्पादन की अपेक्षा एमआईसी बनाने पर निर्भर करता है।