बीटी कॉटन की तरह ही मक्के की संकर प्रजातियों में भी काफी अधिक मात्रा में प्रोटीन होती है जो देश में एक क्रांति पैदा कर सकती है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, संकर मक्का गरीबों के लिए पोषण तत्व उपलब्ध कराने के साथ ही पॉल्ट्री उद्योग के लिए भी वरदान साबित हो सकता है।कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, गुणवत्तायुक्त प्रोटीन मक्का (क्यूपीएम) कार्यक्रम के तहत देश में मक्के की कम-से-कम दस किस्में उपलब्ध हैं।
क्यूपीएम में प्रोटीन की मात्रा करीब 74 फीसदी है, जबकि सामान्य मक्का में यह महज 37 फीसदी है। क्यूपीएम की दिलचस्प बात यह है कि इसके प्रोटीन की गुणवत्ता दूध की प्रोटीन की गुणवत्ता का 90 फीसदी है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक मंगला राय ने बताया कि संकर बीजों ने मक्के की पैदावार 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक कर दी है। बकौल मंगला राय, संकर मक्का देश में बीटी कॉटन से भी बड़ी क्रांति पैदा कर सकती है। उन्होंने कहा कि यदि मानसून अनुकूल रहा तो मक्के की पैदावार वर्ष 2008..09 में दो करोड़ टन से अधिक पहुंच सकती है।
यह इस लिहाज से अच्छी खबर है कि देश में चावल और गेहूं के बाद मक्का ही तीसरी सबसे महत्वपूर्ण फसल है। देश में मौजूदा समय में 49 फीसदी मक्के का इस्तेमाल मुर्गियों के चारे के रूप में, 12 फीसदी का पशुओं के चारे के लिए किया जाता है, 25 फीसदी उपयोग खाद्य वस्तुओं के तौर पर और 13 फीसदी का उपयोग स्टॉर्च में किया जाता है।
मक्का अनुसंधान महानिदेशालय के सैन दास ने कहा कि क्यूपीएम मक्का कम लागत और गुणवत्तापूर्ण प्रोटीन वाली फसल है जो लोगों की ऊर्जा और प्रोटीन की जरूरतें पूरी करती है और साथ ही पॉल्ट्री उद्योग की भी आवश्यकता पूरी करती है।
झारखंड के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एन.एन. सिंह ने कहा कि हाल ही में जारी क्यूपीएम संकरा मक्का शक्तिमान-1 का किसानों पर अच्छा असर हुआ है। हालांकि देश में क्यूपीएम की संभावनाओं का दोहन करने के लिए अनुसंधान एवं नीतिगत हस्तक्षेप की काफी जरूरत है।
सिंह ने सुझाव दिया कि अनुसंधान प्रयास के तहत उन राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जहां मक्के की उत्पादकता काफी कम है। बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली सहित 12 राज्यों के उत्पादन क्षेत्र को लें तो इनकी हिस्सेदारी देश के कुल मक्का उत्पादन क्षेत्र में 50 फीसदी से ज्यादा है। इन राज्यों की उत्पादकता 658 किलोग्राम से लेकर 1,677 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के बीच है।
सिंह के अनुसार, चूंकि इन संकर प्रजातियों की खासियत है कि ये कठोर मौसम भी आसानी से ढल जाते हैं लिहाजा इन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बीज निगम और राज्य बीज निगमों को चाहिए कि इस संकर किस्म को ठीक समय पर और वाजिब मूल्य पर किसानों को मुहैया कराया जाना चाहिए। मक्के के बड़े उत्पादक राज्यों की बात की जाए तो आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है।
अकेले इस राज्य की हिस्सेदारी देश के कुल मक्का उत्पादन में 17 फीसदी की है। कृषि वैज्ञानिक एस.के.वासल ने बताया कि हाल के वर्षों में गुणवत्तायुक्त प्रोटीन मक्के ने नयी संभावनाओं को पैदा किया है। हालांकि अभी भी इस क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हमें लोगों और कुक्कुटों में बेहतर पोषक तत्व लेने की आदत विकसित करनी होगी। क्यूपीएम शोध गतिविधि को प्रोत्साहित करने और शोर्धकत्ताओं को प्रशिक्षित करने के लिए ट्रेनिंग कोर्सेज शुरू किए जाने चाहिए।