विशेषज्ञों का मानना है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए कृषि से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं को और बेहतर करना होगा।
साथ ही घरेलू स्तर पर आपूर्ति की व्यवस्था भी दुरुस्त करने की जरूरत है। गौरतलब है कि महंगाई की दर लगातार बढ़ती जा रही है और इस पर काबू के लिए सरकारी उपाय खास कारगर नजर नहीं आ रहे हैं।
ग्रेन एशिया एंड इंटरनेशनल पल्सेज फोरम पर पल्सेज इमपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष केसी भरतिया ने कहा कि खेती के घटते रकबे व कम उपज के कारण देश में दाल का उत्पादन 130-140 लाख टन पर स्थिर हो गया है। उन्होंने कहा कि मांग व पूर्ति में इन दिनों बहुत ज्यादा अंतर देखा जा रहा है। ऐसे में आपूर्ति को और मजबूत करने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करके दाल के उत्पादन को प्रोत्साहित करना चाहिए।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया के मुताबिक खेती के मामले में देश को काफी नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि देश में प्रति हेक्टेयर धान की उपज मात्र 2.4-2.8 टन है। इसकी तुलना जब चीन से की जाती है तो इस मामले में यह काफी कम नजर आता है। चीन में प्रति हेक्टेयर धान की उपज 6 टन से अधिक है।
उन्होंने कहा कि धान की उपज मौजूदा संसाधन के तहत ही 15-20 फीसदी तक बढ़ायी जा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जोत का कम होता आकार, पानी की किल्लत व स्थिर उपज के कारण कृषि का भविष्य काफी अनिश्चित नजर आ रहा है।
अदनी इंटरप्राइजेज (एग्रो) के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी कहते हैं कि शेयर बाजार की अनिश्चितता के कारण जिंस बाजार में निवेश के बढ़ने से लोगों में काफी हौव्वा हो गया है। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग गेहूं की खेती छोड़ अन्य फायदेमंद चीजों की खेती करने लगे हैं और इन कारणों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मूल्य में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
जानकारों का कहना है कि कृषि उत्पादन की बढ़ोतरी के लिए निजी क्षेत्रों को खेती में भागीदार बनाने की जरूरत है। इस वास्ते निजी निवेशकों को सरकार द्वारा आमंत्रित किया जाना चाहिए।