देश में नकदी फसलों की पैदावार लगातार तेजी से बढ़ रही है। इनकी पैदावार सामान्य फसलों की पैदावर के मुकाबले काफी अधिक देखी जा रही है।
इनकी पैदावार में बढ़ोतरी से विश्व स्तर पर नकदी फसलों की खेती का चलन बढ़ता जा रहा है। माना जा रहा है कि नकदी फसलों की अधिक खेती के कारण ही विश्व स्तर पर खाद्य संकट पैदा हो रहा है। नकदी फसलों की प्रति एकड़ पैदावार में पांच सालों के दौरान 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
बीते पांच सालों में यानी कि 2000-01 से 2006-07 के दौरान प्रति एकड़ गेहूं के उत्पादन में महज 8.97 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जबकि चावल के प्रति एकड़ उत्पादन में इस दौरान गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट 2.43 फीसदी की देखी गई। गेहूं व चावल के मुकाबले नकदी फसल सरसों की पैदावार में समान अवधि के दौरान 47.32 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
जबकि सोयाबीन के उत्पादन में प्रति एकड़ 29.75 फीसदी की बढ़त देखी गई तो गन्ने की पैदावार में 12.5 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया।खाद्य पदार्थों की उपज के मामले में संकट की बात यह है कि कुछ अनाजों की प्रति एकड़ पैदावार में बीते कुछ सालों के दौरान गिरावट दर्ज की गई है। गेहूं का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2000-01 से 06-07 के दौरान 27.08 क्विंटल से गिरकर 26.71 क्विंटल के स्तर पर पहुंच गया।
इस अवधि के दौरान दाल की प्रति हेक्टेयर पैदावार 5.44 क्विंटल से बढ़कर 6.16 क्विंटल हो गयी। हालांकि 2006-07 के दौरान इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 2003-04 के मुकाबले 4 फीसदी कम रही। वर्ष 2003-04 के दौरान इसकी प्रति हेक्टयर उपज 6.35 क्विंटल रही। इस समान अवधि के दौरान चावल की प्रति हेक्टेयर पैदावार 19.01 क्विंटल से बढ़कर 21.27 क्विंटल के स्तर पर पहुंच गई।
प्रति हेक्टेयर उत्पादन में कमी के कारण अनाज के उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त करना मुश्किल हो रहा है। बीते पांच सालों के दौरान खाद्य पदार्थों का उत्पादन निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले 93 फीसदी रहा। दाल के मामले में यह उत्पादन 87.7 फीसदी रहा तो तिलहन के मामले में 85.3 फीसदी। जबकि गन्ने व कपास के उत्पादन में निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गई। फसलों के उत्पादन में अंतर के कारण लोगों की खाने की आदत में भी बदलाव देखा जा रहा है।
बीते बीस सालों के दौरान प्रति व्यक्ति अनाज की खपत में कमी दर्ज की गई है। वर्ष1983 में ग्रामीण इलाकों में जहां अनाज की प्रति व्यक्ति खपत 14.9 किलोग्राम थी वह 2004-05 में घटकर 12.1 किलोग्राम हो गई।
वही शहरी इलाकों में समान अवधि के दौरान यह खपत प्रति व्यक्ति 11.6 किलोग्राम से गिरकर 9.9 किलोग्राम रह गई। इंटरनेशनल फुड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीटयूट के निदेशक अशोक गुलाटी कहते हैं, ‘स्वाभाविक तौर पर पहले जितनी जमीन पर अनाज की खेती की जाती थी उतनी जमीन पर अब अनाज की खेती नहीं की जा रही है।’