केंद्र सरकार ने मार्च में कच्चे और रिफाइंड तेल के आयात शुल्क में जो कटौती की थी, उस वजह से घरेलू बाजार में कीमतों में कुछ कमी आई थी।
लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय वजहों से घरेलू बाजार में कीमतों में फिर से तेजी का रुख देखा जा रहा है। दरअसल दो कारणों की वजह से ऐसा हो रहा है। पहला तो यह कि डॉलर की कीमत में थोड़ा-थोड़ा सुधार हो रहा है।
दूसरा यह कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य तेल की कीमतों में इजाफा हो रहा है। इसके चलते आयात शुल्क चाहे कुछ भी हो, आयात की कीमत तो बढ़ ही गई है। गौरतलब है कि सरकार ने महंगाई को काबू में करने के लिए ही कच्चे और रिफाइंड तेल के आयात शुल्क में कटौती की थी। पिछले कुछ हफ्तों में पाम ऑयल, रिफाइंड सोया तेल, बिनौला तेल और सरसों के तेल के 15 किलो के कंटेनर की कीमतों में 35 से 50 रुपये का इजाफा हुआ है।
पाम ऑयल के 15 किलो कंटेनर की कीमत 900 रुपये तक पहुंच गई है। जबकि अप्रैल में आयात शुल्क में कटौती के बाद इसकी कीमतें 850 रुपये हो गई थीं। इसी तरह पिछले पखवाड़े सोया तेल की कीमतों में भी बढ़ोतरी हुई है। इसकी कीमतें 950 रुपये प्रति 15 किलो से बढ़कर 980-990 रुपये प्रति 15 किलो तक पहुंच गई हैं।
दूसरी ओर, सरसों के तेल में प्रति 15 किलो के हिसाब से 95 रुपये का इजाफा हुआ है। इसकी कीमतें 910 रुपये प्रति 15 किलो से बढ़कर 950 रुपये हो गई हैं। इसी तरह बिनौले के तेल की कीमतें भी बढ़कर 990 रुपये प्रति 15 किलो तक पहुंच गई हैं।
हालांकि मूंगफली के तेल की कीमतों में स्थिरता का रुख बना हुआ है। मूंगफली के तेल की कीमत 1,110-1,125 रुपये प्रति 15 किलो के स्तर पर बनी हुई हैं। गुजरात राज्य खाद्य तेल व्यापारी संघ (गुजरात स्टेट एडिबल ऑयल मर्चेंट्स असोसिएशन) के अध्यक्ष प्रताप चंदन कहते हैं – वैसे पिछले मंगलवार तक खाद्य तेल की कीमतें कम थीं, लेकिन पिछले हफ्ते से ही कीमतों में तेजी का रुख दिखने लगा था।
बाजार के सूत्र बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे पाम ऑयल की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। दिसंबर 2007 में कच्चे पाम ऑयल की कीमत जहां 936 डॉलर प्रति टन थीं, वहीं फरवरी 2008 में यह बढ़कर 1,260 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थीं। इसी दौरान कच्चे सोया तेल की कीमतें भी 1,119 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1,480 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गईं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों के बढ़ने के अलावा भी कई और कारण हैं, जिनकी वजह से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें बढ़ी हैं। अभी हाल ही रुपये के मुकाबले डॉलर की कीमतों में तेजी आई है, जिसकी वजह से आयात मूल्य में बढ़ोतरी हुई है। नतीजतन घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतों का बढ़ना स्वाभाविक है। दूसरी ओर कच्चे तेल की कीमतों के बढ़ने से भाड़ा भी बढ़ गया, जिसकी वजह से भी आयात मूल्य में इजाफा हुआ।