कच्चे जूट की खरीद करने वाली सरकारी एजेंसी भारतीय जूट निगम (जूट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, जेसीआई) जूट उत्पादन के मौजूदा साल (जुलाई से जून) में तकरीबन 1.4 लाख टन जूट की खरीद कर सकता है।
पिछले साल निगम ने करीब 80 हजार टन कच्चा जूट खरीदा था। इनमें से हुई ज्यादातर खरीद व्यावसायिक थी पर बाद में इन्हें नुकसान पर जूट मिलों को बेचना पड़ा था। जूट पैकेजिंग मैटेरियल एक्ट, 1987 (जेपीएमए) के तहत अनाजों और चीनी की पैकेजिंग में कच्चे जूट का इस्तेमाल अनिवार्य तौर पर किया जाता है और इसके लिए कच्चे जूट की खरीद की जाती है।
सूत्रों के मुताबिक, निगम को पिछले साल 44 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था और इस बार निगम नुकसान से मुक्ति पाना चाहता है। इसलिए इस साल उसने काफी पहले ही बड़े पैमाने पर जूट की खरीदारी कर ली है। क्योंकि सीजन की शुरुआत में जूट की कीमत काफी कम होती है।
अब तक खरीदे गए 1.4 करोड़ टन जूट में से 1 करोड़ टन की खरीदारी भारतीय जूट निगम के केंद्र पर ही की गई, जबकि शेष की खरीदारी निगम द्वारा नियुक्त किए गए कोऑपरेटिव ने की है। ज्यादातर खरीद जूट उत्पादन के पारंपरिक क्षेत्रों मालदा, मुर्शिदाबाद और नाडिया जिले में की गई है। इस साल टीडी-5 एक्स आसाम किस्म के कच्चे जूट का बाजार समर्थन मूल्य 1,055 रुपये प्रति क्विंटल है।
जबकि पिछले साल इसका बाजार समर्थन मूल्य 1,350 से 1,400 रुपये प्रति क्विंटल के बीच था। इनमें से 5 लाख बेल्स जूट की खरीदारी ऊंची कीमत पर की गई थी पर जूट मिलों में उसके बाद लंबी हड़ताल हो गई। 2007-08 सीजन की शुरुआत 23 लाख बेल्स के भंडार से हुई जबकि इस सीजन में 95 लाख बेल्स उत्पादन और 4 लाख टन का आयात हुआ।
सीजन 2008-09 के लिए केंद्र की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इसकी ऊंची कीमत के बावजूद अनुमान व्यक्त किया गया है कि अगली सीजन में जूट का उत्पादन इस सीजन के मुकाबले 25 से 30 फीसदी कम होगा।