सरकार की ओर से प्रस्तावित कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) से जिंस के वायदा कारोबारियों को राहत मिलने की उम्मीद है।
गौरतलब है कि वर्ष 2008-09 के बजट के दौरान वित्त मंत्री ने इस कर का प्रसताव पेश किया था, लेकिन इसे लेकर काफी विवाद हुआ था। प्रस्तावित कर के बारे में जिंस कारोबारियों का कहना है कि इस तरह का टैक्स दुनिया के किसी भी देश में नहीं लगाया जाता है।
फिर भारत में इसकी जरूरत क्यों पड़ी। उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री ने बजट में कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स के नाम पर 0.17 फीसदी का कर जिंस के वायदा कारोबार पर लगाने की बात कही थी।
व्यापरियों की ओर से कर के प्रस्ताव के विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस पर पहल की और कारोबारियों की शिकायत को सलाहकार परिषद के पास विचार के लिए भेज दिया। जिसके अध्यक्ष डॉ. रंगराजन हैं। सूत्रों के मुताबिक, सलाहकार परिषद कारोबारियों की मांग पर गौर फरमा रही है और जल्द ही कोई निर्णय ले लिया जाएगा।
प्रस्तावित कर के बारे में उम्मीद की जा रही थी कि इस टैक्स के लागू होने से नकदी प्रभावित होती और बाजार के वायदा कारोबार पर भी आसर पड़ने की आशंका थी। यही नहीं, इससे कारोबारियों के कारोबार की मात्रा में भी कमी आती, क्योंकि प्रस्तावित कर से उन पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता।
गौरतलब है कि इससे पहले अमेरिका में इस तरह के कर को लगाने की कोशिश की गई थी, लेकिन वहां भी इसका काफी विरोध हुआ और अंतत: सरकार को उस प्रस्ताव को खारिज करना पड़ा। अंतरराष्ट्रीय स्तर के जिंस विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के कर से सिंगापुर और शंघाई जैसे प्रतियोगी बाजार को फायदा होगा और भारत के कारोबारी इसमें पिछड़ सकते थे। इस बाबत व्यापारियों के प्रतिनिधियों ने उपभोक्ता मामले के मंत्री से मुलाकात भी की थी।
वित्त मंत्री का कहना है कि सीटीटी कर को लगाने की जरूरत इसलिए महसूस की गई, क्योंकि इस बजट में एसटीटी कर प्रणाली में बदलाव लाया गया था। दरअसल, एसटीटी में कमी की गई थी, जिससे आयकर वसूली पर असर पड़ने की आशंका थी। साथ ही सरकार के कुछ नौकरशाहों ने इस बात की आशंका जाहिर की थी कि इस प्रकार के कदम से स्टॉक ब्रोकरों का रुझान कमोडिटी की ओर ज्यादा हो जाएगा।
कारोबारी खुश
बजट में प्रस्तावित कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (सीटीटी) से कारोबारियों को मिल सकती है छूट
वित्त मंत्री ने 0.17 फीसदी सीटीटी लगाने का किया था प्रस्ताव