समाचार पत्र के प्रकाशकों के लिए बुरी खबर है। समाचार पत्र छापने के लिए इस्तेमाल होने वाले कागजों की कीमत प्रति मीट्रिक टन 1000 डॉलर को छूने जा रही है।
इनमें देसी व आयातित दोनों ही प्रकार के कागज शामिल हैं। देश से कुल 40,000 समाचार पत्र प्रकाशित किए जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि छपाई के कागजों की कीमतों में चार महीने के दौरान जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया है।
चार महीने पहले छपाई के कागज की कीमत प्रति मीट्रिक टन 760 डॉलर थी। यानी कि इस दौरान इसकी कीमत में 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इनमें 15-20 फीसदी की अतिरिक्त बढ़ोतरी को जोड़ देने पर गत छह महीने के दौरान बढ़ोतरी 55 से 60 फीसदी की हो जाती है।
दिल्ली के अखबार मेट्रो नाउ को छापने वाली मेट्रोपोलिटन मीडिया कंपनी के अध्यक्ष समीर कपूर कहते हैं, ‘आयतित कागजों की कीमत अब प्रति मीट्रिक टन 945 डॉलर हो जाएगी। बीते 35 सालों से छपाई के कागज को आयात करने वाले मुंबई के कारोबारी ने बताया कि उम्दा किस्म के कागजों की कीमत प्रति मीट्रिक टन 900 डॉलर बतायी जा रही है। खास करके गुलाबी पेपर की कीमत तो प्रति मीट्रिक टन 900 डॉलर से अधिक बतायी जा रही है।’
बेनेट कोलमैन के निदेशक (बिजनेस व कमर्शियल) मोहित जैन कहते हैं, ‘पेपर उद्योग में शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि छह महीने के दौरान इसकी कीमत इस प्रकार से बढ़ी है।’ पेपर उद्योग से जुड़े लोग कहते हैं कि 1995 में इसकी कीमत प्रति मीट्रिक टन 1000 डॉलर के स्तर पर चली गई थी लेकिन 12 महीने के भीतर इसकी कीमत कम हो गई थी।
आयातित छपाई के कागजों की कीमत गत दिसंबर से चढ़ रही है। इस बढ़ोतरी से नाराज गुजराती दैनिक अखबरा संदेश के चेयरमैन फलगुनभाई चिमनभाई पटेल कहते हैं कि यहां तक कि देसी छपाई कागज उत्पादकों ने भी इसकी कीमत में बढ़ोतरी कर दी है। वे एक मीट्रिक टन कागज 5,000-7,000 रुपये की कीमत पर बेच रहे हैं। वे कहते हैं कि यह बढ़ोतरी बेवजह की गई है।
पटेल ने अपने अखबार की छपाई के लिए गत फरवरी महीने में स्थानीय छपाई के कागजों का इस्तेमाल किया। बताया जा रहा है कि आयातित छपाई के कागजों की आपूर्ति काफी कम हो गई है। क्योंकि चीन व उत्तरी अमेरिका के कई कागज निर्माताओं ने विभिन्न कारणों से अपनी इकाइयां बंद कर दी है।
इन्हीं बातों का स्थानीय कागज निर्माता भी फायदा उठा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि स्थानीय कागज उत्पादक भी आयतित कागजों की किल्लत का फायदा उठा रहे हैं।इन दिनों कई प्रकाशक अखबार की छपाई के लिए उनसे संपर्क कर रहे हैं। एक एजेंट के मुताबिक वे बहुत अधिक दाम पर काफी मात्रा में कागजों की बुकिंग कर रहे हैं। और इस प्रकार के रुख के लिए अंग्रेजी दैनिक जिम्मेदार है।
बेनेट कोलमैन के जैन कहते हैं, ‘इस प्रकार के आरोप बेमतलब है। क्योंकि स्थानीय कागज हमारी आधुनिक मशीन के लिए उपयुक्त नहीं है।’ जैन आईएनएस न्यूजपेपर कमेटी के चेयरमैन भी है। दाम में बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा असर छोटे व मझोले प्रकाशकों पर पड़ने की संभावना है। पटेल कहते हैं, वर्तमान बढ़ोतरी से छोटे व मझोले प्रकाशकों को जो फायदे होते वह अब समाप्त हो जाएंगे।
प्रभात खबर के संपादक हरिवंश कहते हैं, ‘हमलोग बहुत ही कम मुनाफा कमाते हैं और यह बढ़ोतरी इस पर असर डालेगी। प्रभात खबर की 3.2 लाख प्रति झारखंड में छापी जाती है।’ छपाई के कागज की कमी उस समय हुई है जब कई बड़े प्रकाशक या तो नए अखबार को शुरू करने या अपने अखबार के नए संस्करण को लाने की योजना बना रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया का चैन्नई संस्करण शुरू होने जा रहा है।
जैन के मुताबिक इस बढ़ोतरी के कारण इस संस्करण को रोका नहीं जा सकता है लेकिन इतना जरूर है कि इससे उत्साह पर प्रतिकूल असर पड़ता है। वे कहते हैं कि इस बढ़ोतरी से सिर्फ छोटे प्रकाशक ही प्रभावित नहीं हुए हैं। उन्होंने बताया कि बेनेट कोलमैन में सालाना 425,000 टन कागज की खपत होती है। यह खपत भारत में होने वाली इस प्रकार के कागज की कुल खपत की 22 फीसदी है।
उनके मुताबिक इस बढ़ोतरी की वजह से अगले साल कंपनी के लाभ में कमी आ सकती है। इस बढ़ोतरी से होने वाले घाटे की पूर्ति के लिए प्रकाशक कई प्रकार के समाधान निकाल रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया समूह इस वृध्दि को देखते हुए अखबार की कीमत में बढ़ाने की सोच रहा है। ताकि इस बढ़ोतरी का भार पाठकों के माथे कर दिया जाए। जैन के मुताबिक कंपनी बहुत गंभीरता से इस क्षति की पूर्ति की सोच रही है। लेकिन कई दूसरे प्रकाशक अपने अखबार की कीमत को नहीं बढ़ा सकते हैं।
प्रभात खबर पहले से ही प्रति कॉपी 3.50 रुपये की दर से बिक रहा है। हरिवंश के मुताबिक इसकी कीमत में और बढ़ोतरी बाजार को मंजूर नहीं होगी।पटेल कहते हैं कि संदेश की कीमत में बीते नौ सालों से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। अखबार की कीमत को नहीं बढ़ाया जा सकता है। क्योंकि बाजार में काफी प्रतियोगिता है।
गुजरात समाचार व दिव्य भास्कर जैसे बड़े खिलाड़ी इस प्रतियोगिता में है। दूसरी बड़ी बात है कि छोटे खिलाड़ी विज्ञापनों की दर में भी बढ़ोतरी नहीं कर सकते हैं। हालांकि बड़े प्रकाशक अपने विज्ञापन की दरों में 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी की सोच रहे है। अन्य प्रकाशक कागजों की कीमत की भरपाई के लिए या तो अपने पन्नों में कटौती करेंगे या फिर जीएसएम को कम करेंगे। अंग्रेजी दैनिक अपने जीएसएम को 45 से 42 पर लाने की सोच रहा है। इससे उन्हें 4 फीसदी की बचत होगी।