खाद्य तेल की धार पतली करने में जुटी सरकार की जोर-जबरदस्ती से न सिर्फ तेल कारोबारियों की हालत पतली होती जा रही है।
बल्कि इस बात के भी आसार बनने लगे हैं कि वह दिन दूर नहीं कि अचानक इसकी कीमत फिर आसमान छूने लगे। वह ऐसे कि फिलहाल जिस मूल्य पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बिक्री हो रही है, उससे कम कीमत पर घरेलू बाजार में तेल बेचा जा रहा है। इस कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार से देश में खाद्य तेल की आवक काफी कम हो गयी है।
तेल आयातकों का कहना है कि सरकारी दबाव के कारण तेल का स्टॉक तो खत्म हो रहा है लेकिन आवक कम होने के कारण आने वाले समय में तेल की कीमत में एकदम से इजाफा होने की आशंका बढ़ती जा रही है।
रिफाइनरी चलाने वालों का यह भी कहना है कि अभी बाजार में उन तेलों को सस्ते दामों पर बेचा जा रहा है, जो आयात शुल्क की कटौती के फैसले से पहले भारतीय बंदरगाह पर आ गए थे। उन्हें आयात शुल्क से मुक्ति मिल गई लेकिन अब नई खरीदारी करने पर वे मौजूदा कीमत पर तेल नहीं बेच पाएंगे।
गुजरात के मेहसाना स्थित गुजरात अंबुजा एक्सपोर्ट लिमिटेड के प्रमुख मानिध गुप्ता ने फोन पर बिानेस स्टैंडर्ड को बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले घरेलू बाजार में हर किस्म के खाद्य तेल की कीमत प्रति किलो दस रुपये कम है। ऐसे में कोई आयातक तेल नहीं मंगाना चाहेगा। वे कहते हैं, ‘खाद्य तेलों का अंतरराष्ट्रीय बाजार नहीं टूट रहा है।
आज की तारीख में सोया डिगम का आयात मूल्य प्रति क्विंटल 1450 डॉलर है। और अन्य खर्चों को जोड़ने के बाद देसी बाजार में इसकी कीमत 5895 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है। जबकि पहले से ही घरेलू बाजार में यह 5645 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। ऐसे में घाटे का सौदा कौन करेगा।’ उन्होंने बताया कि देश में प्रति माह 12 लाख टन तेल की जरूरत है। सरकार प्रति माह 50,000 टन तेल का आयात कर रही है। सरकारी दबाव के कारण व्यापारियों का स्टॉक लगभग खत्म होने पर है।
यही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोयाबीन से बायोडीजल बनाने पर मिलने वाली निर्यात छूट भी इनकी कीमतों में आने वाली संभावित तेजी की आग में घी का काम करेगी। जामनगर स्थित इंडियन एक्सट्रैक्शन लिमिटेड के अधिकारी ए.एल. सहगल ने बताया कि सोयाबीन से बायोडीजल के उत्पादन पर कोई निर्यात कर नहीं लगता है।
उन्होंने बताया कि अर्जेंटीना अगर सोयाबीन तेल का निर्यात करता है तो उसे 45 फीसदी निर्यात कर देना पड़ता है, वहीं बायोडीजल बनाने पर उसे निर्यात कर में सौ फीसदी की छूट मिल जाती है। ऐसे में तेल कौन बनाएगा। सहगल के मुताबिक आयात शुल्क में कटौती के फैसले के बाद जो तेल आए थे, वही इन दिनों बाजार में बेचे जा रहे हैं। और वह अधिक से अधिक एक या डेढ़ महीने तक चल सकता है। कोई भी आयातक इन दिनों खाद्य तेलों का आयात नहीं कर रहा है।
दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन (डिवोटा) के अध्यक्ष लक्ष्मी चंद्र अग्रवाल भी इससे सहमत नजर आते हैं। दिल्ली शहर में रोजाना 650 टन खाद्य तेल की जरूरत होती है। जहां पहले 400-450 टन तेल की आवक होती थी, वह घटकर 50-100 टन के आसपास रह गयी है। उन्होंने बताया कि गत 11 अप्रैल से लेकर अब तक दिल्ली के तेल व्यापारियों ने 36,00000 लीटर तेल की बिक्री की है। और अब रिफाइनरी से आवक नहीं होने के कारण स्थिति नाजुक नजर आ रही है।
उड़ने की फिराक में तेल बाजार
ऊंची कीमत के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार से आयातक नहीं खरीद रहे तेल
आयात शुल्क कटौती से पहले हुई खरीद का माल ही बेचा जा रहा
अधिक से अधिक एक या डेढ़ महीने तक चल सकता है स्टॉक, खत्म होने पर अचानक बढ़ सकती हैं कीमतें
बायोडीजल पर निर्यात छूट भी डाल रही इस आग में घी
मिलों से आवक नहीं होने के कारण स्थिति नाजुक