भंडारण और प्रसंस्करण की उचित व्यवस्था न होने से बदहाल बिहार के आलू किसानों की सुध लेते हुए राज्य सरकार ने आलू की प्रसंस्करण नीति बनाने का फैसला किया है।
मसौदे में आलू के बेहतर इस्तेमाल और इसके प्रसंस्करण के लिए विभिन्न उपाय किए जाने का अनुमान है। राज्य के कृषि मंत्री नागमणि ने कहा कि उनकी सरकार इस मामले में सभी संभव उपायों पर विचार कर रही है।
अभी तक राज्य में आलू प्रसंस्करण की कोई स्पष्ट नीति न होने पर पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री ने राज्य सरकार से आग्रह किया था कि वे इस मसले पर जल्दी कोई ठोस पहल करें। इस दिशा में पहला कदम बढ़ाते हुए राज्य सरकार ने नालंदा में आलू हब बनाने का निर्णय लिया है। जानकारों के अनुसार, आलू प्रसंस्करण की कोई स्पष्ट नीति बन जाने के बाद इसके उत्पादन का बेहतर व्यवसायीकरण संभव हो पाएगा, जिसका सीधा लाभ इनके उत्पादकों को मिलेगा।
प्रसंस्करण नीति बन जाने के बाद आलू से चिप्स जैसी कई चीजें असानी से तैयार हो पाएंगी और किसानों के लिए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना संभव हो जाएगा। सूत्रों के अनुसार, प्रसंस्करण नीति स्पष्ट हो जाने के बाद आलू आश्रित उद्योगों में निजी भागीदारी की संभावना पुख्ता हो जाएगी। इसके उत्पादकों की माने तो आलू को उपजाना ज्यादा मुश्किल नहीं है, लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल इसके भंडारण और प्रसंस्करण को लेकर आती है।
भंडारण की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण बिहार में उपजाया जाने वाले आलू का एक हिस्सा खराब हो जाता है। आलू को प्रसंस्करित कर इससे ज्यादा लाभ कमाने की गुंजाइश होती है। इसलिए, जानकार आलू की प्रसंस्करण नीति बनाने पर जोर देते रहे हैं। आलू उत्पादन में बिहार का देश में तीसरा स्थान है और यहां 19 प्रतिशत आलू की पैदावार होती है, जबकि 35 प्रतिशत आलू उत्तर प्रदेश, 24 प्रतिशत पश्चिम बंगाल और शेष 22 प्रतिशत अन्य राज्यों में पैदा किया जाता है।
बिहार में आलू की कई सारी किस्में उपजाई जाती हैं, जिनमें कुफरी सिंदूरी, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी ज्योति, कुफरी लालिमा, कुफरी सतलज, कुफरी अशोक, कुफरी पुखराज, कुफरी चिपसोना-1, कुफरी चिपसोना-2, कुफरी आनंद आदि प्रमुख हैं।