पूर्वी भारत में जिंस कारोबार का मुख्य केंद्र कहलाने वाला ईस्ट इंडिया एंड हेशियन एक्सचेंज लिमिटेड (ईआईजेएचई) बिखरने के कगार पर खड़ा है, लेकिन इससे पहले इसका बिखराव समाप्ति की ओर बढ़े, इसमें जान फूंकने की कवायद शुरू हो गई है।
यह एक्सचेंज साल 1919 से अपना वजूद बनाए हुए है। पिछले पांच महीने से इस एक्सचेंज में वायदा कारोबार बंद पड़ा है। कभी यहां रोजाना करीब 15 करोड़ रुपये का कारोबार होता था, लेकिन अब इसके खाली पड़े रिंग हॉल को किराए पर देने की तैयारी चल रही है ताकि इस एक्सचेंज को न सिर्फ बिखरने से बचाया जा सके बल्कि यहां फिर से कारोबार भी शुरू हो सके।
एक्सचेंज के प्रेजिडेंट अरुण सेठ ने कहा कि किराए से मिलने वाली रकम से जिंस कारोबार के लिए ऑनलाइन सिस्टम लगाया जाएगा। इसके अलावा यह एक्सचेंज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज और एनसीडीईएक्स से भी तालमेल बिठाने की तैयारी कर रहा है ताकि कोलकाता के इस एक्सचेंज को बचाया जा सके।
जूट वायदा के कारोबार में कुछेक चुनिंदा क्षेत्रीय कारोबारी लगे हुए थे और उन्हीं के भरोसे यहां कारोबार होता था। लेकिन बदले माहौल में जूट वायदा उनके लिए लाभदायक नहीं रहा, लिहाजा वे सोने-चांदी की तरफ मुड़ गए क्योंकि इन चीजों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से तय होती है।
वैसे जूट वायदा के मामले में दूसरे एक्सचेंज का हाल भी कमोबेश ऐसा ही है। यहां भी तीन-चार कारोबारी ही इसमें जुटे हुए दिखाई देते हैं। प्रेजिडेंट ने कहा कि हम स्थिति से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्राथमिकता के आधार पर हम अपना रिंग हॉल किराए पर देंगे और हम उनसे गठजोड़ भी करेंगे।
एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स में जूट वायदा 2004 में शुरू हुआ था और इसने भी कोलकाता के इस जिंस एक्सचेंज को काफी नुकसान पहुंचाया। फिलहाल इस एक्सचेंज के 80 सदस्यों में से चार बचे हैं। एक्सचेंज के सेक्रेटरी बी. एन. गंगोपाध्याय ने कहा कि प्रभावशाली जूट मिल मालिकों और डीलर आदि को इस कारोबार से दोबारा जोड़ने की कोशिशें की जा रही हैं।
इसके साथ ही हम महत्वाकांक्षी सदस्यता अभियान भी चलाने जा रहे हैं ताकि उनका आत्मविश्वास लौटे। इसके लिए हमें अपने नियम-कानून में थोड़े बहुत परिवर्तन भी करने पड़ेंगे। एक्सचेंज के एक अधिकारी के मुताबिक, दूसरे एक्सचेंजों में जूट वायदा के कायदे-कानून और कार्टलाइजेशन के चलते ही एफएमसी ने जूट वायदा को एक से ज्यादा बार सस्पेंड किया है। यही वजह है कि हम अपने एक्सचेंज को एक बार फिर शुरू करने जा रहे हैं।
1952 से 2004 के बीच यह एक्सचेंज जूट के कारोबार का अकेला ऑपरेटर था, उस समय में भी जब 1963 से 1993 तक जूट वायदा पर पाबंदी लगी रही। 1997 में इस एक्सचेंज में जूट में हेजिंग की शुरुआत हुई।