विजाग स्टील के मालिक राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) बुनियादी ढांचे और गृह-निर्माण संबंधी उत्पाद बनाने वाली देश की अग्रणी कंपनियों में से एक है।
हालांकि आरआईएनएल सरकारी कंपनी है लेकिन लौह अयस्क की अधिग्रहित करने में यह असफल रहा है। इसके स्टील उत्पादन का विस्तार हो रहा है और लौह अयस्क प्राप्त कर यह कच्चे माल के मामले में निश्चिंत रहता।
दूसरी तरफ, एनएमडीसी, जो भारत का सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक है, स्टील निर्माण के क्षेत्र में उतरना चाहता है। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) और आरआईएनएल की साझेदारी में छत्तीसगढ़ में 40 लाख टन स्टील उत्पादन क्षमता वाली मिल लगाने की इसकी योजना सेल की इस परियोजना से बाहर होने से अप्रभावित रहने की उम्मीद है।
हाल ही में आरआईएनएल के अध्यक्ष पी के बिश्नोई ने इन दो सरकारी कंपनियों, आरआईएनएल और एनएमडीसी, के विलय का प्रस्ताव रखा है। बिश्नोई ने विलय के इस प्रस्ताव के लिए स्टील मंत्रालय से बातचीत की है। जबतक इसके शुरुआती जवाब सकारात्मक नहीं होते तब तक बिश्नोई इन बातों को आम नहीं करते। शुरुआती जबाव पूर्णत: तार्किक और कंपनियों के आकार को देखते हुए साहसिक हैं।
बहुत दिनों पहले की बात नहीं है जब सेल सभी सरकारी स्टील कंपनियों को अपनी छतरी के नीचे लाना चाहता था जिसमें आरआईएनएल भी शामिल था। इस प्रस्ताव के पीछे तर्क यह था कि क्षमताओं के एकीकरण, जिसका समर्थन सर्वप्रथम लक्ष्मी मित्तल द्वारा किया गया और बाद में पूरी दुनिया ने इसे अपनाया, से स्टील उद्योग को मजबूत करने में मदद मिली है। लेकिन सेल के इस प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया गया जिसकी वजह आंध्र प्रदेश सरकार का घोर विरोध था। आंध्र प्रदेश सरकार आरआईएनएल को राज्य के प्रतिष्ठा के रुप में देखती है।
अगर राज्य सरकार का यही रुख रहता है बिश्नोई विलय प्रस्ताव का निर्वहन किस प्रकार कर पाएंगे ? इस मामले में फायदे की बात यह है कि एनएमडीसी और आरआईएनएल दोनों ही आंध्र पदेश में हैं। इसके अलावा एनएमडीसी के विलय की संभावना से आरआईएनएल को स्टील निर्माण में व्यवहृत होने वाला प्रमुख कच्चा माल, लौह अयस्क, को प्राप्त करने की चिंता कम हुई है।
आरआईएनएल के लिए सबसे बड़े फायदे की बात यह है कि आधुनिक ड्राई कार्गो बंदरगाह के सामने इसकी 20,000 एकड़ जमीन है। ड्राई कार्गो बंदरगाह कच्चे माल और स्टील के आयात की सुविधा प्रदान करता है। इतनी अधिक जमीन और बेहतर बुनियादी ढांचे से प्रबंधन को एक ‘मास्टर प्लान’ मिल गया है। इस मास्टर प्लान के तहत वर्तमान स्थान पर 10 वर्षों में चार चरणों के अंतर्गत स्टील निर्माण की क्षमता 36 लाख टन से बढ़ा कर 160 लाख टन करने की है।
हालांकि, बिश्नोई मास्टर प्लान से भी अधिक उत्पादन क्षमता की उम्मीद रखते हैं। उनके अनुसार साल 2020 तक उत्पादन 250 लाख टन तक हो सकता है। अगर टाटा स्टील जमशेदपुर स्थित पुराने प्लांट से 100 लाख टन स्टील अंतिम रूप से पैक करने के बारे में सोच सकती है तो ऐसी कोई वजह नहीं है कि आरआईएनएल विजाग स्थित अपने प्लांट से 160लाख टन से अधिक का उत्पादन नहीं कर सके।
250 लाख टन की क्षमता के लिए आरआईएनएल को ग्रीनफील्ड प्लांट बनाने की जरुरत होगी। अगर बिश्नोई का प्रस्ताव आगे बढ़ जाता है तो नया संयंत्र तार्किक तौर पर छत्तीसगढ़ में लगाया जाएगा। एक बात जो बिल्कुल नहीं भूली जानी चाहिए कि यद्यपि एनएमडीसी का मुख्यालय हैदराबाद में है लेकिन लौह अयस्क खान का का काम मुख्य रुप से छत्तीसगढ़ के बैलाडिला क्षेत्र और कर्नाटक के दोनिमलाइ (कम परिमाण में) है।
अन्य लौह अयस्क वाले राज्यों की तरह ही छत्तीसगढ़ भी स्थानीय मूल्यवर्ध्दन की अपेक्षा रखती है और इसे एनएमडीसी पी पूरा भरोसा है। बिश्नोई ने कहा, ‘आरआईएनएल और एनएमडीसी ने अपने-अपने क्षेत्रों में क्षमताओं को साबित किया है और उनके यूनियन एक ऐसी इकाई बनाएंगे जो अलग-अलग काम करने की तुलना में कहीं ज्यादा मजबूत होगा।’
एनएमडीसी, जिसने साल 2007-08 के दौरान स्थानीय बाजार में 244.06 लाख टन अयस्क बेचा और 37.78 लाख टन का निर्यात किया, ने 40 प्रतिशत अधिक शुध्द लाभ (3,251 करोड़ रुपये) अर्जित किया है। देश के स्टील क्षमता की वृध्दि की कोशिशों में एनएमडीसी आगे बढ़ कर आया है और वर्ष 2020 तक लौह अयस्क उत्पादन 400 से 500 लाख टन बढ़ाने की चुनौती स्वीकार की है। अब कंपनी की नीति है कि घरेलू बाजार में ही अधिकांश खनिज बेचे जाएं और वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति बनाए रखी जाए।