हिंदी के सुप्रसिद्ध कहानीकार फणीश्वरनाथ रेणु की मशहूर कहानी ‘पंचलाइट’ में कहानी के नायक गोधन की सारी गलतियां पंचायत सिर्फ इसलिए माफ कर देती है कि उसे पंचलाइट (पेट्रोमैक्स) जलाना आता है और उसने ऐसा करके अपनी पंचायत की इज्जत बचा ली है।
इस कहानी में पेट्रोमैक्स तब पूरे गांव के लिए कौतूहल था, पर मौजूदा स्थितियों में तो इस बात के पूरे आसार हैं कि अगली पीढी के लिए यही पेट्रोमैक्स (केरोसिन से जलने वाला) फिर से कौतूहल की चीज बन जाएगा।
स्टोव ऐंड लाइट असोसियशन (दिल्ली) के अध्यक्ष के. सी. कपूर कहते हैं कि केरोसिन से जलने वाले पेट्रोमैक्स के सामने इतनी चुनौतियां और मुसीबतें हैं कि हो सकता है एक दशक बाद इसे किसी म्यूजियम में रखना पड़े!
कपूर कहते हैं कि केरोसिन पेट्रोमैक्स की बिक्री में 10 सालों के अंदर ही 90 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। उनके मुताबिक, 1998 के आसपास दिल्ली में पेट्रोमैक्स और लालटेन के जहां 150 उत्पादक थे वहीं अब इस शहर में इसके केवल 20 से 25 उत्पादक रह गए हैं। सदर बाजार में केरोसिन पेट्रोमैक्स के मशहूर उत्पादक नंदा लाइट हाउस के विनोद नंदा कहते हैं कि उनकी तीन पीढ़ियां पिछले 44 साल से केरोसिन पेट्रोमैक्स का उत्पादन कर रही हैं, पर अब स्थितियां काफी प्रतिकूल हैं।
वे कहते हैं कि 1998 के आसपास एक महीने में जितने पेट्रोमैक्स बिक जाते थे, उतने तो आज सालभर में भी नहीं बिक पाते। तब एक महीने में औसतन 2,000 से 3,000 पेट्रोमैक्स की बिक्री हो जाती थी पर अब महीने में बड़ी मुश्किल से 150 से 200 पेट्रोमैक्स बिक पाते हैं। उनका कहना है कि पहले तो अफगानिस्तान,भूटान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में भी यहां बने पेट्रोमैक्स निर्यात किए जाते थे पर अब तो केवल मुंबई के ही कुछ निर्माता इसका थोड़ा-बहुत निर्यात कर रहे हैं।
विनोद कहते हैं-‘बस इस कारोबार से पुराना लगाव ही है जिसके चलते हम अभी भी इसका उत्पादन कर रहे हैं, वरना इसके कारोबार में पहले वाली बात नहीं रही।’ कारोबारियों के अनुसार, न केवल दिल्ली बल्कि इसके उत्पादन के मुख्य गढ़ मुंबई समेत अन्य केंद्रों जैसे कोलकाता और सहारनपुर में भी इसका उत्पादन तेजी से घटा है।
केरोसिन पेट्रोमैक्स के खस्ताहाल का कारण जानने पर कपूर कहते हैं कि कभी गरीब आदमी की रोशनी माने जाने वाली यह लाइट महंगाई के चलते अब गरीब आदमी की नहीं रही। तेजी से बढ़ती महंगाई का इस उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। स्टील और पीतल के दाम तो दोगुने हुए ही हैं, केरोसिन तेल की कीमत भी काफी बढ़ चुकी है। केरोसिन पेट्रोमैक्स में लगभग 40 छोटे-बड़े कल-पुर्जे होते हैं।
एक कारोबारी ने बताया कि जामनगर और मुंबई से आने वाले इन कल-पुर्जों की कीमत में जबरदस्त वृद्धि होने से एक केरोसिन पेट्रोमैक्स की कीमत महज पांच साल में दोगुनी हो गई है। कारोबारियों की राय में इसकी मांग घटने की एक और वजह देश में बिजली का तेजी से हो रहा प्रसार है। वे मानते हैं कि बिजली के अलावा बैट्री और इन्वर्टर ने भी केरोसिन पेट्रोमैक्स की जरूरत कम कर दी है।
अब जहां भी बिजली पहुंच चुकी है, वहां इसकी मांग सिरे से गिरी है। एक अन्य कारोबारी प्रशांत नंदा कहते हैं कि गैस से जलने वाले पेट्रोमैक्स भी अब केरोसिन पेट्रोमैक्स के सशक्त विकल्प बनकर उभरे हैं। वह कम खर्चीला तो है ही इसका रखरखाव भी आसान है। नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य उत्पादक ने बताया कि मेरठ में बनने वाले छोटे गैस सिलिंडरों से हमारे पेट पर लात पड़ी है।
वे कहते हैं कि इन सिलिंडरो को बगैर आईएसआई मुहर के बेचना जुर्म है। हाल यह है कि बाजार नकली सिलिंडरों से पटा हुआ है। ये गैस सिलिंडर न केवल सस्ते हैं बल्कि इनसे जलने वाले पेट्रोमैक्स का रखरखाव भी आसान है। यही नहीं इनका रोशनी के साथ-साथ खाना बनाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
के. सी. कपूर बड़ी साफगोई से कहते हैं-‘भले ही वे इसके कारोबार से जुड़े हैं लेकिन उन्हें यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि केरोसिन पेट्रोमैक्स के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं। हमें तो ऐसा लग रहा है कि कहीं 10 साल बाद इसे किसी म्यूजियम में ना रखना पड़े।’