जबरदस्त सीजनल मांग के चलते इस हफ्ते खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आने की पूरी संभावना है।
रबी की फसल के अंतिम दौर में होने और मांग में अधिक तेजी होने की वजह से सभी प्रकार के खाद्य तेलों के भाव में औसतन 2 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है।
यदि यह ऐसा होता है तो महंगाई को रोकने की सरकारी कोशिशों को पलीता लग सकता है। वास्तव में सीजनल मांग अप्रैल में शुरू हो जाती है, जब रबी की फसल अंतिम दौर में होती है और सितंबर तक मांग में तेजी बनी रहती है। इससे खरीफ की फसल में जो तिलहन फसलें उगाई जाती हैं, उनको लेकर किसानों को अंदाजा हो जाता है।
भारत में सरसों के तेल के सबसे बड़े उत्पादक के. एस. ऑयल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक संजय अग्रवाल कहते हैं कि मांग में तेजी तो है और सरकार जमाखोरी को लेकर जो कडा रुख अख्तियार कर रही है, उससे इसका कारोबार प्रभावित हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक इस साल यानी 2007-08 मे रबी की फसल में सरसों के तेल के उत्पादन में 50 लाख टन की कमी आई है जबकि पिछले साल 6.2 करोड सरसों के तेल का उत्पादन हुआ था।
इसके अलावा बिनौले और सोयाबीन को भी मिला लें तो इनकी बुआई वाली जमीन में भी कमी आई है। पिछले साल 52.76 लाख हेक्टेयर जमीन पर तिलहनों की खेती की गई थी जबकि इस साल केवल 38 लाख हेक्टेयर जमीन पर इसकी खेती हुई है।
केंद्रीय तेल उद्योग एवं व्यापार संगठन ने अनुमान लगाया है कि जुलाई 2007-जून 08 तक 910,000 टन अरंडी के तेल के उत्पादन होने की संभावना है जबकि पिछले साल 850,000 टन अरंडी केतेल का उत्पादन हुआ था। 2006-07 में भारत में 780,000 टन अरंडी के तेल का उत्पादन हुआ था।
सरकार ने महंगाई दर के 7 फीसदी बढ़ने के बाद से तेल की जमाखोरी से निपटने के लिए अभियान छेड़ रखा है। सॉलवेंट एक्सट्रेक्टर्स असोसिएशन के निदेशक मेहता कहते हैं कि इससे तेल के कारोबारी हतोत्साहित हुए हैं। गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री कहते हैं कि आपूर्ति दवाबों और मांग में बढोतरी होने की वजह से तेल की कीमतों का बढ़ना तय है।