देश के चीनी उत्पादन में 31 मई तक पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 6 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है।
एक औद्योगिक अधिकारी के अनुसार पेराई में हुई देरी के कारण चीनी के उत्पादन में गिरावट आई है। उल्लेखनीय है कि इस सीजन में 31 मई तक 254 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ शुगर कोऑपरेटिव फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने कहा, ’31 मई तक 254 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 271 लाख टन था।’ साल 2007-08 के सीजन में उत्पादन के 262 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है जबकि पिछले वर्ष 283 लाख टन का उत्पादन हुआ था। चीनी का सीजन अक्टूबर से सितंबर तक का होता है।
कुमार ने कहा, ‘तमिलनाडु और कर्नाटक में अभी भी पेराई चल रही है।’ उन्होंने कहा कि सितंबर के अंत तक उत्पादन में 8-10 लाख टन और जुड़ने का अनुमान है। सीजन की शुरुआत में चीनी उद्योग का अनुमान था कि उत्पादन 310 लाख टन से अधिक होगा लेकिन बाद में महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में पेराई में हुई देरी के कारण आकलन की समीक्षा की गई।
उन्होंने कहा कि बारिश के कारण महाराष्ट्र और गन्ने की कीमत के मुद्दे के कारण पेराई की शुरुआत देरी से हुई। गन्ने की कम फसल के कारण भी उत्पादन में कमी आई है। कुमार ने कहा कि गन्ने के उत्पादन में 20 प्रतिशत की कमी के कारण साल 2008-09 में चीनी का उत्पादन घट कर 220 लाख टन हो सकता है। निर्यात के संदर्भ में उन्होंने कहा कि आंकड़ा 30 लाख टन को पार कर चुका है और सीजन के अंत तक इसके 35 लाख टन होने का अनुमान है।
2006-07 के सीजन में भारत ने 17 लाख टन चीनी का निर्यात किया था। सरकार के सहयोगी रुख की बदौलत इस सीजन के दौरान निर्यात में बढ़ोतरी हुई। हालांकि, कृषि एवं खाद्य मंत्री शरद पवार ने पिछले सप्ताह रोम में कहा था कि निर्यात में दी जा रही सहायता केवल सितंबर 2008 तक के लिए है। शरद पवार के इस कथन पर कुमार ने कहा इससे चीनी के निर्यात पर निश्चित तौर पर असर पड़ेगा।
2006-07 के सीजन से देश में चीनी का उत्पादन प्रचुरता से हो रहा है जिसके कारण सरकार 50 लाख टन का सुरक्षित भंडार तैयार कर रही है साथ ही आवश्यकता से अधिक स्टॉक के तरलीकरण के लिए निर्यात में सहायता प्रदान कर रही है। तटीय क्षेत्रों के चीनी मिलों को सरकार 1,350 रुपये प्रति टन और गैर तटीय क्षेत्रों में स्थित मिलों को 1,450 रुपये प्रति टन उपलब्ध करा रही है।