‘कमोडिटी में उछाल के लिए सटोरिये नहीं हैं जिम्मेदार’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 7:42 AM IST

विश्व भर में बढ़ती महंगाई और जिंसों की आसमान छूती कीमतों ने एक राजनीतिक बहस को छेड़ दिया है।


लेकिन विश्लेषक खाद्यान्न और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के लिए सट्टेबाजों को क्लीन चिट देते हुए इसकी वजह मांग और आपूर्ति में सही तालमेल न बैठ पाने को बता रहे हैं। मेरिल लिंच की ताजा रिपोर्ट में भी कुछ इसी तरह के रुझान सामने आए हैं।

मेरिल लिंच के मुताबिक, ‘खाद्यान्न और ऊर्जा जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों के बढ़ने के लिए हम सट्टेबाजी को जिम्मेदार नहीं मानते बल्कि हमारा मानना है कि मांग और आपूर्ति में असंतुलन की वजह से कीमतों में तेजी आई है’।

वर्ष 2001 से वैश्विक वित्तीय बाजार में डेरिवेटिव फाइनेंनिशयल इंस्ट्रुमेंट्स के लिहाज से बहुत तेजी आई है। बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट स्टेटिस्टिक्स (बीआईएस) के अनुसार संगठित एक्सचेंजों के जरिये इक्विटी, मुद्रा और ब्याज दरों में इस दशक की शुरुआत की तुलना में अब जाकर चार गुने का इजाफा हुआ है। इसके अलावा ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) डेरिवेटिव में भी इस दौरान पांच गुने का इजाफा हुआ है, और यह बाजार दुनिया की जीडीपी के मुकाबले कई गुना बड़ा हो गया है।

ओटीसी में तेजी के साथ-साथ कमोडिटी ओटीसी डेरिवेटिव में भी इस दौरान बहुत तेजी आई है। यदि तुलना की जाए तो चालू कीमतों के आधार पर वैश्विक अर्थव्यवस्था में कमोडिटी की वैल्यू 10 फीसदी को पार कर गई है। ये संकेत बताते हैं कि दूसरे डेरिवेटिव बाजारों की तुलना में आने वाले साल में कमोडिटी अनुबंधों में तेजी आएगी।
यदि जिंस कारोबार में चालू रुख बरकरार रहता है तो कमोडिटी डेरिवेटिव में और तेजी आएगी।

इस रिपोर्ट में जिंसों की बढ़ती कीमतों को सकारात्मक रूप में लिया गया है क्योंकि इससे कई जिंसों के उत्पादन में तेजी को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर इंडेक्स से जुड़े निवेश में नये निवेश के प्रवाह से कोई खास जिंस जरूर प्रभावित होगा, इसके कुछ हल्के से प्रमाण भी मिलते हैं कि इंडेक्स से जुड़े निवेश से नकद मूल्य में तेजी आ सकती है। कच्चे तेल, मक्का और सोयाबीन जैसे जिंसों में देखा गया है कि वायदा कीमतों से हाजिर बाजार में कीमतें प्रभावित हुई हैं।

गौरतलब है कि इन जिंसों की कीमतों में पिछले पांच साल के दौरान बेहद तेजी आई है। वास्तव में, 2000 की शुरुआत में वायदा कीमतें, हाजिर कीमतों से आगे निकल गई थीं। लेकिन जैसे-जैसे जिंस बाजार में स्थयित्व बढ़ता गया वैसे-वैसे यह कमी भी घटती गई। इसका परिणाम यह निकला कि  पिछले चार वर्षों में वायदा कीमतों के ग्राफ में लगातार उतार-चढ़ाव आता गया। यदि हाजिर कीमतें वायदा कीमतों के साथ मेल नहीं खाएंगी तब जिंस सूचकांक निवेश और नकद कीमतों का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा।

दुनिया भर में अभी भी तेल और खनिजों का काफी भंडार बचा हुआ है, लेकिन फिर भी तस्वीर धुंधली नजर आती है क्योंकि जिन देशों के पास ये भंडार हैं, उनमें से कई के पास योजनाएं नहीं हैं। नतीजतन कई बाजार प्रतिभागी (जिसमें मुख्य रूप से सरकारें शामिल हैं) अपने भंडारों को भविष्य के मद्देनजर सुरक्षित रखने की नीति पर काम रहे हैं और बड़े पैमाने पर उनका दोहन करके प्राप्त आमदनी को वित्तीय बाजार में निवेश करने से बच रहे हैं।

First Published : June 25, 2008 | 11:16 PM IST