मक्के की सबसे अधिक खपत करने वाले पोल्ट्री और स्टार्च उद्योगों का कहना है कि मक्के की कीमत में वृद्धि के चलते इनके उत्पादों की कीमत बढ़ाने के सिवा उनके सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
1,600 करोड़ रुपये का स्टार्च उद्योग मक्के की कीमत में तेजी से हो रही वृद्धि से हैरान है। जहां एक महीने पहले एक किलो मक्के का भाव 16 रुपये था वहीं आज यह बढ़कर 18 रुपये हो गया है। सूत्रों का कहना है कि यदि मक्के की कीमत में निकट भविष्य में कोई कमी न हुई तो स्टार्च की कीमत में बढ़ोतरी होना तय है।
ऑल इंडिया स्टार्च मैन्यूफैक्चर्स असोसियशन के अध्यक्ष अमोल एस. सेठ ने बताया कि मक्के की उपलब्धता इस उद्योग के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है। मक्के की कीमत पर अंकुश लगाने के लिए हमने सरकार के सामने एक प्रतिनिधिमंडल भी भेजा। सेठ ने कहा कि यदि मक्के की कीमत में थोड़ी भी वृद्धि हुई तो स्टार्च की कीमतें बढ़कर 19 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाएगी।
उल्लेखनीय है कि यह उद्योग स्टार्च की आपूर्ति दवा उद्योगों, खाद्य और कपड़ा उद्योगों को करता है। सेठ ने कहा कि मक्के की अनुपलब्धता के चलते हमलोग अपने उत्पादन को लेकर काटर्ेलाइजेशन कर रहे हैं जिसका कमोबेश असर इस पूरे उद्योग पर पड़ेगा। स्टार्च उद्योग तक मक्के के पहुंचने की लागत पिछले दो महीने में 750 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 950 से 1,000 रुपये तक पहुंच चुकी है।
उद्योग जगत के सूत्रों के मुताबिक, हाल ये है कि मक्के के प्रमुख उत्पादक राज्य कर्नाटक में भी इसके भाव प्रति क्विंटल 1,000 रुपये को पार कर चुका है। उधर नैशनल एग कोऑर्डिनेशन कमिटी (एनईसीसी) की अध्यक्ष अनुराधा देसाई ने बताया कि 38,000 करोड़ रुपये के घरेलू पोल्ट्री उद्योग के लिए ऐसी स्थितियां सामने आ सकती है कि छोटे उत्पादक अंडे के उत्पादन से दूर ही हो जायें।
फिलहाल देश में अंडे का खुदरा मूल्य 2.50 से 2.70 रुपये प्रति पीस है। पर देसाई का कहना है कि जुलाई तक इसका खुदरा मूल्य 3 रुपये प्रति पीस तक पहुंच सकता है। देसाई ने यह भी कहा कि हम इस संभावना से कोई इनकार नहीं कर रहे कि अक्टूबर तक इसकी कीमत प्रति पीस 4 रुपये तक नहीं पहुंच जाएगी। गौरतलब है कि एनईसीसी ने मक्के के वायदा कारोबार पर रोक लगाने और इसके निर्यात को सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा संचालित करने की अपनी मांग बार-बार दोहरायी है।
उसका कहना रहा है कि मक्के के निर्यात पर आयात शुल्क लगाना चाहिए। बाजार सूत्रों का कहना है कि मौजूदा सीजन में देश से मक्के का होने वाला निर्यात अब तक के अपने सर्वोच्च स्तर 25 लाख टन तक पहुंच सकता है। एनईसीसी अध्यक्ष का कहना था कि सरकार का मक्के के निर्यात पर फिलहाल प्रतिबंध न लगाने का रुख उनके लिए निराशाजनक है।
जबकि खरीफ मक्के की नयी फसल के बाजार में आने में अभी 4 महीने से अधिक का समय है और इसके अक्टूबर के अंत तक बाजार में आने का अनुमान है। उनके अनुसार, कुक्कुटों के लिए पालन के लिए सबसे जरूरी चीज मक्के की कीमत में तेजी से वृद्धि होने के चलते अंडे की उत्पादन लागत 0.90 से 1 रुपये प्रति पीस से बढ़कर 2 से 2.10 रुपये प्रति पीस तक पहुंच गयी है।
एनईसीसी के अध्यक्ष देसाई ने कहा कि पहले ही उत्पादन लागत बढ़ने से 10 फीसदी छोटे कुक्कुट उत्पादकों ने खुद को इससे दूर कर लिया है पर यदि मौजूदा स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ तो निकट भविष्य में कम से कम और 30 फीसदी उत्पादक इसके उत्पादन से खुद को दूर कर लेंगे। ऐसे समय में जब महंगाई 9 फीसदी के स्तर को छू रही हो तब पोल्ट्री उत्पादों में तेजी आना निश्चित तौर पर सरकार और उपभोक्ताओं के लिए मुश्किल स्थिति होगी।
गौरतलब है कि नैशनल कमोडिटी ऐंड डैरिवैटिव्स एक्सचेंज में जुलाई सौदे के लिए मक्के का भाव गुरुवार को 968 रुपये पर बंद हुआ था जबकि इसके ठीक एक महीने पहले यह 857 रुपये प्रति क्विंटल पर था। महज एक महीने के दौरान ही मक्के की कीमत में 13 फीसदी का उछाल आ चुका है।
हैरान है उद्योग
मक्के की उपलब्धता बनी हुई है सबसे बड़ी चुनौती
मक्के की कीमत 1,000 रुपये प्रति क्विंटल छूने को तत्पर
मक्के के निर्यात पर रोक नहीं लगाने के सरकारी फैसले से दंग है उद्योग
उद्योगों का मक्के के निर्यात पर लेवी लगाने की मांग
अंडे में 60 और स्टार्च में 11 फीसदी की तेजी संभव
अक्टूबर तक अंडे का खुदरा मूल्य हो सकता है 4 रुपये प्रति पीस
स्टार्च की कीमत पहुंच सकती है 20 रुपये प्रति किलो तक