स्टील अलायंस हुआ खत्म, छूटा उम्मीद का दामन

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 06, 2022 | 11:01 PM IST

इंडियन स्टील अलायंस (आईएसए) की 5 मई को हुई ‘मौत’ पर किसी ने भी आंसू नहीं बहाए। एलायंस कई बार विवादों के घेरे में आ चुका था। एलायंस सरकार के घेरे में भी आ चुकी थी।


गौरतलब है कि स्टील उद्योग की बेहतरी के लिए तकरीबन 7 साल पहले इंडियन स्टील एलायंस का गठन किया गया था। इसके गठन में सार्वजनिक क्षेत्र की 2 बड़ी स्टील कंपनियों की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है।


कमजोर भूमिका


एलायंस का गठन एक साझा उम्मीद के साथ किया गया था कि एलायंस स्टील को उपयोग को प्रोत्साहित करेगा। वह भी  खासकर अर्ध शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में। हालांकि एलायंस इस भूमिका को निभाने में नाकाम रहा। उम्मीद यह भी जताई गई कि एलायंस शोध एवं विकास की बेहतरी के लिए भी काम करेगा।


इस समय स्टील उत्पादक तमाम तरह की मुश्किलों में फंसे हैं। लौह अयस्क और कोकिंग कोल जैसे बुनियादी कच्चे माल की की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी ने स्टील उत्पादकों की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। ऐसे में जरूरत है कि स्टील उत्पादकों की ऊर्जा लागत में कमी कर दी जाए और उन्हें कम कीमतों पर कच्चा माल उपलब्ध कराया जाए।


इस मुश्किल वक्त में खुद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की बजाय आईएसए घरेलू लौह अयस्क उत्पादकों से झगड़ने में ही लगा रहा। दूसरी ओर ये कंपनियां नये भंडारों की खोज और अधिक उत्खनन को निर्यात के लिए वाजिब वजह बता रही हैं।


साख में गिरावट


लौह अयस्क का निर्यात किया जाए या नहीं यह बहस काफी पुरानी हो चुकी है। एलायंस द्वारा लौह अयस्क निर्यात को रोकने का अभियान किसी भी सूरत में वाणिज्य मंत्रालय को पसंद नहीं आया। एलायंस की जगह पर इस्पात मंत्री भी हमेशा यही कहते रहे कि लौह अयस्क का निर्यात बंद कर दिया जाए। क्या यही काफी नहीं था?


फिर क्यों एलायंस ने अपनी ओर से अतिरिक्त प्रयास किए। टाटा स्टील ने इस बारे में कभी ज्यादा नहीं सोचा है जब उसने 2004 में इसे छोड़ा तब भी नहीं। वैसे टाटा स्टील आईएसए का संस्थापक सदस्य रहा है।


दरअसल बड़े खिलाड़ियों की बेरूखी ने ही एलायंस की विश्वसनीयता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिह्न लगाने वाली दूसरी कई बातें भी हैं। सरकार को यह भी लगता है एलायंस बड़ी स्टील कंपनियों का कार्टेल बन गया है। इसके पीछे कारण चाहे जो भी रहे हों स्टील उद्योग की प्रतिनिधि संस्था होने के बावजूद एलायंस ने मंझोली स्टील कंपनियों तक पहुंचने की कोशिश नहीं की।


इस वजह से एलायंस ने एक बेहतरीन अवसर हाथ से निकल जाने दिया। एलायंस ने उस स्थिति में कोई खास भूमिका नहीं निभाई जब महंगाई दर 7 फीसदी के आसपास पहुंच गई और सरकार स्टील और सीमेंट की कीमतों पर आंखें तरेरे हुए बैठी थी।


यहां तक की जब वित्त मंत्री पी चिदंबरम का बयान आया कि स्टील कंपनियों ने कार्टेल बना रखा है। तब यही स्पष्ट संदेश आया कि महंगाई के लिए स्टील कंपनियों का कार्टेल जिम्मेदार है न कि सरकार। इसके बाद स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) भी इससे अलग हो गई क्योंकि उसके पास कोई और विकल्प था भी नहीं। यही बात एलायंस के ताबूत में आखिरी कील साबित हुई।


एक संयुक्त प्रयास


आईएसए के बाद अभी हाल ही में स्टील उद्योग के प्रतिनिधियों की प्रधानमंत्री के साथ बैठक हुई। इस बैठक में स्टील कंपनियों ने स्टील की कीमतों में 4000 रुपये प्रति टन की कटौती करने की बात कही और सरिया (लॉन्ग प्रोडक्ट) जैसे उत्पादों की कीमतों में 2000 रुपये प्रति टन की कटौती की।


इसके अलावा कच्चे माल की बढ़ती कीमतों के बावजूद स्टील कंपनियों ने अगले तीन महीनों तक स्टील की कीमतें नहीं बढ़ाने का फैसला किया है। इसके बदले में सरकार भी थोड़ा झुकी है। सरकार ने प्रस्तावित निर्यात कर में बढ़ोतरी को वापस ले लिया है। गौरतलब है कि स्टील उत्पादों पर 5 से 15 फीसदी तक निर्यात शुल्क लगाने की बातें की जा रही थीं। इस बैठक के जरिये साबित हो गया कि स्टील कंपनियों पर कार्टेल बनाने जैसे आरोप बेबुनियाद हैं।


सेल के अध्यक्ष सुशील रूंगटा ने कहा है कि स्टील उद्योग सरकार की महंगाई रोकने की मुहिम का पूरा सहयोग करेगा। इसके अलावा उन्होंने कहा है कि तेजी से बढ़ती स्टील की मांग को पूरा करने के लिए स्टील की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने की आवश्यकता है।


हालांकि अभी उत्पादन क्षमता तो बढ़ रही है लेकिन मांग उससे भी तेज अनुपात से बढ़ रही है। जिसकी वजह से आयात करना मजबूरी है। इसलिए जरूरी है कि स्टील उद्योग की ‘सेहत’ का ठीक रहना बेहद जरूरी है ताकि 2020 तक 20 करोड़ टन स्टील उत्पादन के लक्ष्य को पूरा किया जा सके। यही सबसे हितकारी होगा।

First Published : May 12, 2008 | 11:14 PM IST