जूट उद्योग ने केंद्र सरकार से गुजारिश की है कि कच्चे जूट के वायदा कारोबार को बंद कर देना चाहिए और कमोडिटी एक्सचेंजों में इसकी जो प्रक्रिया है उसको प्रतिबंधित कर देना चाहिए।
गौरतलब है कि जब एनसीडीएक्स में जूट का वायदा कारोबार शुरू हुआ था तब 2005-06 में सट्टेबाजी के चलते इसकी स्पॉट कीमतों में उछाल आ गया था। गौरतलब है कि तीन साल पहले संप्रग सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी जिसको बाद में वापस ले लिया गया था।
उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि वायदा कारोबार की वजह से देश भर में 40 लाख जूट किसानों और 3 लाख श्रमिकों को नुकसान हो रहा है। जब 31 जुलाई 2007 से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में जूट का वायदा कारोबार शुरू हुआ है तब से फाइबर की कीमतो में अप्रत्याशित उछाल देखने को मिला है। इसके लिए सट्टेबाजी को जिम्मेदार माना जा रहा है न कि अधिक मांग होने की तुलना में कम आपूर्ति को।
ऐसा माना जाता है कि कारोबारी जूट की जमाखोरी कर लेते हैं जिससे वे कीमतें तय करने में अपनी मनमर्जी चलाने लगते हैं जिससे जूट मिलों को महंगी कीमतों पर जूट खरीदना पड़ता है। राष्ट्रीय जूट नीति के तहतॉ जूट की कीमतों में स्थिरता बेहद जरूरी है।
सरकार को भी निर्यात के लिहाज से जूट से बनने वाले विभिन्न उत्पादों में बेहद संभावनाएं नजर आ रही हैं। राष्ट्रीय जूट नीति के अनुसार सरकार जूट और जूट उत्पादों के निर्यात की मात्रा पर 15 फीसदी की दर से वार्षिक चक्रवृद्धि दर (कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट, सीएजीआर) लगाने की सोच रही है।
कच्चे जूट के वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग करने वाले तर्क दे रहे हैं कि जूट और इससे बनी वस्तुओं का निर्यात भी इसी बात पर निर्भर करता है कि आखिर हम दूसरों से कितनी कम कीमतों पर अपना माल उपलब्ध करा पा रहे हैं।