प्याज की कीमत में गिरावट से किसानों की आंखों में ‘आंसू’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 06, 2022 | 11:04 PM IST

भारत में आसमान छूती कीमतों के बीच राजनीतिक रुप से संवेदनशील, खराब हो जाने वाली कमोडिटी प्याज की कीमतों में गिरावट आई है।


इससे प्याज उपजाने वाले किसानों की परेशानियां बढ़ गई हैं और महंगाई को नियंत्रित करने में लगी सरकार के सामने इन किसानों की गुहार भी अनसुनी कर दी गई है।


पिछले सात महीने में प्याज के मूल्यों में 82 प्रतिशत की गिरावट आई है क्योंकि किसानों ने पिछले वर्ष प्याज की  ऊंची कीमतों को देखते हुए कृषि क्षेत्र में इजाफा किया,  फसल भी जबर्दस्त हुई लेकिन इस अवधि में महंगाई भी अपने चरम पर रही जिसमें खाद्य पदार्थों के  बढते मूल्य का अहम योगदान रहा।


महाराष्ट्र के महत्वपूर्ण प्याज उत्पादक क्षेत्र नासिक जिले के एक किसान यशवंत पाटिल ने बताया, ‘जब हमने फसल की बुवाई की तो प्याज की कीमतें अधिक थीं। उत्पादन को मौसम की भरपूर मदद मिली लेकिन प्याज की कीमतों में आई गिरावट से लाभों पर पानी फिर गया।’


देश के सबसे बड़े प्याज-कारोबार केन्द्र लासलगांव (महाराष्ट्र) में बेहतर क्वॉलिटी के प्याज का थोक मूल्य मंगलवार को 82 प्रतिशत घट कर 351 रुपये प्रति क्विंटल रहा जबकि 1 अक्टूबर 2007 को इसका कारोबार 1,951 रुपये पर किया जा रहा था। लेकिन इसी अवधि के दौरान कई हाजिर बाजार में औसत मूल्य गिर कर 180 रुपये हो गया।


आमतौर पर प्याज की खेती साल में तीन बार की जाती है। मॉनसून, शीत ऋतु और गर्मी में। वर्ष 1998 में प्याज की उच्च कीमतों के कारण तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी की सरकार को राज्यों के चुनाव में नुकसान का सामना करना पड़ा था।


अप्रैल के अंत में महंगाई की दर 3.5 वर्षों में सर्वाधिक 7.61 प्रतिशत रही जिसमें खाद्य पदार्थों की उच्च कीमतों का भी योगदान था। नेशनल होर्टिकल्चरल रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के एडिशनल डायरेक्टर सतीश भेंडे ने कहा, ‘सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों से आवक बढ़ी है ले किन जहां तक मांग का प्रश्न है तो वह स्थिर बना हुआ है।’


एनएचआरडीएफ के अनुमानों के मुताबिक भारत में साल की शुरुआत से मार्च 2008 तक प्याज का उत्पादन 11.9 फीसदी बढ़ कर 74.5 लाख टन होने की संभावना थी। नासिक जिले के मगरुअल गांव के एक किसान विलास धोमसे ने कहा, ‘मुझे तो प्याज के उत्पादन की लागत भी नहीं मिल पायी। मैंने दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्याज बेचा है।’


धोमसे ने कहा कि खाद, डीजल और मजदूरी के मूल्य में बढ़ोतरी होने से उत्पादन लागत में वृध्दि हुई है। एक कारोबारी डी वाई भेलकर ने बताया, ‘प्याज का इस्तेमाल लोग सब्जियों के साथ करते हैं। इसलिए अगर प्याज की कीमतों में गिरावट आती है तो हमलोगों को मांग में कोई वृध्दि नहीं दिखती है।’पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में प्याज की कम कीमत के विरोध में सड़क जाम पर उतरे किसानों ने सरकार से वित्तीय मदद की मांग की।

First Published : May 13, 2008 | 11:24 PM IST