सरकार इस साल पिछले साल की तुलना में गेहूं और चावल की बड़े पैमाने पर खरीद करने जा रही है।
और इसके लिए बढ़िया कीमत भी दी जाएगी जिससे किसान निजी कंपनियों की ओर आकर्षित ना हों। महंगाई दर बढ़ने की वजह से मुश्किल स्थिति में फंसी सरकार पर्याप्त खाद्यान्नों की खरीद करके चिंता मुक्त होना चाहती है।
रबी और खरीफ की फसल के दौरान कोई भी कंपनी जो 10,000 टन से अधिक गेहूं या चावल की खरीद करेगी, उसको सरकार को पूरा ब्यौरा देना होगा कि उसने कहां से कितनी खरीद की है? और यदि खरीद 25,000 टन को पार कर जाएगी तो तो केंद्रीय खाद्य विभाग के समक्ष घोषणापत्र दाखिल करना होगा।
सरकार की इस साल 29 फीसदी अधिक गेहूं खरीदने की योजना है। पिछले साल के 50.2 लाख टन गेहूं खरीद की तुलना में सरकार इस साल 64.8 लाख टन गेहूं खरीदने जा रही है। दूसरी ओर चावल की खरीद में इस साल 7.18 फीसदी का इजाफा होने जा रहा है।
पिछले साल जहां 2.1 करोड़ टन चावल खरीदा गया था, इसके मुकाबले इस साल 2.25 करोड़ टन चावल खरीदा जाएगा। मजेदार बात यह है कि सरकारी एजेंसियों ने इस साल कुल गेहूं आवक का 98.10 फीसदी हिस्सा खरीदा है जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 77.58 फीसदी था।
इससे निजी कंपनियां खाद्यान्न खरीदने में रुचि नहीं दिखा रही हैं। खाद्यान्न खरीद से जुड़ी एक कंपनी के अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार द्वारा कीमतों को काबू में करने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनको लेकर हम संतुष्ट हैं।
वैसे लगभग हर गेहूं उत्पादक राज्य से काफी मात्रा में गेहूं खरीदा गया है लेकिन इस दौड़ में पंजाब थोड़ा पीछे रह गया लगता है जहां गेहूं का उत्पादन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। बाजार के एक विश्लेषक का मानना है कि अनाज के पर्याप्त भंडार से खुले बाजार में खाद्यान्नों की कीमतें स्थिर रह पाएंगी और महंगाई की जो मार बढ़ती जा रही है, उससे कुछ राहत मिल सकती है।