घरेलू इस्पात निर्माताओं ने चेताया है कि यदि 7 अगस्त के बाद भी इस्पात की कीमतें न बढ़ायी गयी तो इसका इस्पात उद्योग पर काफी बुरा असर पड़ेगा।
उद्योग जगत के सूत्रों ने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे इस्पात उद्योग पर फिर से सरकारी पहरा बिठा दिया गया है। सूत्र ने बताया कि सरकार अभी इस्पात उद्योग से बिक्री का आंकड़ा और पाक्षिक निर्यात रिपोर्ट मांग रही है। इसके अलावा, मूल्यों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने हर महीने बैठक की है।
उल्लेखनीय है कि इस्पात की कीमतें न बढ़ाने की कंपनियों की वचनबद्धता 7 अगस्त को 3 महीने पूरे कर रही है। इस्पात उद्योग का मानना है कि ऐसे में यदि कंपनियों को कीमतें बढ़ाने से रोका गया और पीछे से सरकारी नियंत्रण में बढ़ोतरी की गई तो इससे विकास की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। उद्योग जगत का कहना है कि ऐसे में उद्योग नियंत्रण के नए युग की शुरुआत हो जाएगी।
देश में इस्पात बनाने वाली शीर्ष कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि यह महसूस हो रहा है कि हम नियंत्रण के युग में वापस चले गए हैं। इससे पहले देश में इस्पात बनाने वाली प्रमुख कंपनियों में से टाटा स्टील एवं जेएसडब्ल्यू स्टील ने कीमतों में बढ़ोतरी करने की जरूरत बताई थी। इन कंपनियों ने कहा था कि मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में इस्पात की कीमतों में लगभग 350 डॉलर प्रति टन का अंतर है।
इस्पात कंपनियों ने बताया कि पिछले साल भर में लौह अयस्क की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। कोयला की कीमतों में 300 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इसकी वजह से इस्पात उत्पादन का मूल्य 350 अमेरिकी डॉलर प्रति टन बढ़ गया है। सूत्रों ने बताया कि मूल्य को नियंत्रित करने से इस्पात कंपनियों का शुध्द लाभ तो प्रभावित हो रहा बल्कि उद्योग से जुड़ा विकास कार्य भी प्रभावित हो रहा है। इसी वजह से परियोजना से जुड़ा निवेश में देरी होगी या इसे वापस लिया जाएगा।