राज्य सरकार की स्वामित्व वाली कुल 33 चीनी मिलों को उत्तर प्रदेश सरकार निजी हाथों में बेचने की तैयारी कर रही है।
गन्ना और चीनी कमीशनर एच. एस. दास ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य के प्रमुख स्थानों पर स्थित इन चीनी मिलों को निजी हाथों में देने के लिए राज्य सरकार जल्द ही रुचि पत्र आमंत्रित करेगी।
इन 33 चीनों मिलों में से 22 चालू हालत में है, जबकि 4 को सरकार ने बीमार इकाई घोषित किया है, जो बोर्ड फॉर इंडस्ट्रीयल एंड फाइनेंशियल रिकंस्ट्रक्शन की निगरानी में है। हालांकि 22 चालू मिलों में से 2007-08 के पेराई सत्र में 17 मिलों में ही काम हुआ था। दास ने बताया कि इन मिलों के निजीकरण का फैसला पिछले साल जून में किया गया था और अब इस बारे में सभी जरूरी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं।
शुगर कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक विनय प्रिय दुबे ने बताया कि टेंडर के लिए अगले 2 से 3 दिनों के अंदर समाचारपत्रों में विज्ञापन प्रकाशित होने शुरू हो जाएंगे। लगभग सभी चीनों मिलों पर गन्ना किसानों का भुगतान का बकाया है। ऐसे में प्राइवेट पार्टियां इसकी देनदारी के बारे में विचार करने के बाद ही इसे खरीदने में रुचि दिखाएंगी।
गौरतलब है कि इस बार उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन में तकरीबन 20 फीसदी की गिरावट आई है। इसकी वजह यह है कि गन्ना किसानों को पिछले पेराई सत्र का भी अब तक भुगतान नहीं किया जा सका है। ऐसे में किसानों ने कम क्षेत्र पर गन्ना की बोआई की। इससे चीनी मिलों को 2008-09 के पेराई सत्र में गन्ना की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
सूत्रों का कहना है कि चीनी मिलों के निजीकरण से उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन पर सकारात्मक असर पड़ेगा और राज्य के गन्ना किसानों को भी फायदा होगा। उल्लेखनीय है कि राज्य में करीब 40 लाख किसान गन्ना की खेती करते हैं।
वर्ष 2007-08 के दौरान राज्य में कुल 132 मिलों में गन्ने की पेराई हुई, जिनमें 22शुगर कारपोरेशन की, जबकि 93 मिलें को-ऑपरेटिव और निजी क्षेत्रों की थीं। खास बात यह कि इस साल प्राइवेट क्षेत्रों की ओर से पांच अन्य चीनी मिलों की स्थापना की गई। उल्लेखनीय है कि चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का महाराष्ट्र के बाद दूसरा स्थान है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में खाड़सारी और गुड़ का भी काफी मात्रा में उत्पादन होता है।
उत्तर प्रदेश सरकार 33 चीनों मिलों के निजीकरण की कर रही है तैयारी
इस बाबत जल्द आमांत्रित किए जाएंगे अभिरुचि पत्र