मांग में हो रही कमी के चलते इस महीने काली मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक इसकी कीमतों में कटौती कर सकता है।
पिछले 8-10 हफ्तों से यहां काली मिर्च की कीमत काफी ऊंची रही है।दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों ने काली मिर्च की कीमतों में कमी कर दी है यानी इसमें 300-350 डॉलर प्रति टन की कमी कर दी है। इस तरह इन देशों ने अपनी बिक्री रणनीति में बदलाव का संकेत दे दिया है। काली मिर्च का एएसटीए ग्रेड फिलहाल 3975 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है जबकि जीएल-550 किस्म 3650 डॉलर प्रति टन के स्तर पर और जीएल-500 किस्म 3450 डॉलर प्रति टन केस्तर पर।
ताजा अनुमान के मुताबिक, वियतनाम ने जनवरी-मार्च के दौरान 15 हजार टन काली मिर्च का निर्यात किया। यहां काली मिर्च के 80-85 फीसदी फसल की कटाई हो चुकी है और जनवरी-मार्च में कम निर्यात केचलते स्टॉक 60-65 हजार टन के स्तर पर पहुंच गया है।कीमत में बदलाव की रणनीति कई चीजों को ध्यान में रखते हुए तय की गई है। यहां महंगाई की दर 12.5 फीसदी पर पहुंच चुकी है और बैंक दर भी ऊंचा है।
यही वजह है कि किसान और व्यापारी अपने स्टॉक को नकदी में बदलने को उत्सुक हैं। बताया जाता है कि इस महीने के अंत तक सभी तरह के ऋण या तो चुकता कर दिए जाएंगे या फिर इसकी नवीनीकरण करा लिया जाएगा। बताया जाता है कि पिछले कुछ महीनों में कॉफी निर्यातकों को 1250 लाख डॉलर का नुकसान हुआ है। इसी वजह से कालीमिर्च के व्यापारी और निर्यातक डरे हुए हैं।
अमेरिकी मंदी के चलते यूरोपीय संघ के सदस्य देश फिलहाल वेट एंड वॉच की रणनीति बनाए हुए हैं और इसने काली मिर्च के बाजार पर अच्छा खासा असर डाला है यानी काली मिर्च की मांग काफी कम हो गई है। इसका असर काली मिर्च के पूरे अंतरराष्ट्रीय बाजार पर भी पड़ा है। जनवरी से मार्च के दौरान अमेरिका और यूरोपीय संघ भारतीय बाजार में काफी सक्रिय थे। उधर, ब्राजील और इंडोनेशिया अंतरराष्ट्रीय बाजार में फिलहाल सक्रिय नहीं है।
एक अनुमान के मुताबिक, अगले तीन महीने के दौरान पूरी दुनिया में करीब 40 हजार टन काली मिर्च की खपत होगी और इसमें वियतनाम बड़ी भूमिका निभाएगा। भारत एमजी-1 ग्रेड का माल बेचता है और इसकी कीमत 3850 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है। भारत को अपना माल बेचने की जल्दी नहीं है क्योंकि घरेलू बाजार में करीब 35 हजार टन काली मिर्च की खपत का अनुमान है।