कच्चा तेल कीमतों में तेजी का रोज नया रेकॉर्ड बनाता जा रहा है। कच्चे तेल की कीमतें 124.73 डॉलर प्रति बैरल तक जा पहुंची हैं और 125 डॉलर प्रति बैरल के मनोवैज्ञानिक आंकड़े से मामूली दूरी पर है।
तेल की कीमतों के बढ़ने की वजह अमेरिका में मांग की तुलना में कम आपूर्ति को बताया जा रहा है। गौरतलब है कि गर्मियों की शुरूआत के साथ ही अमेरिका में तेल की मांग में इजाफा हो जाता है।
न्यू यॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में जून में कच्चे तेल के वायदा कारोबार में 0.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यहां पर कच्चे तेल की कीमतें कल की तुलना में 1.04 डॉलर बढ़कर 124.73 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर जा पहुंची। पिछले साल इसी दौरान की कीमतों की तुलना में कीमतें बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई हैं।
दूसरी ओर कच्चे तेल ने ब्रेंट को भी प्रभावित किया है। यहां पर भी जून में कच्चे तेल के वायदा कारोबार में 1.2 फीसदी का उछाल आया और कीमतें 1.41 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़कर रेकॉर्ड 124.25 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं।
एक सरकारी रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका में रिफाइन ईंधन भंडार में कमी आई है इसके अलावा रिफाइनरियों के उत्पादन में कमी आई है। दूसरी ओर बार्कलेज कैपिटल ने कल ही संभावना जताई थी कि चीन और मध्य पूर्व में डीजल की तेज मांग अमेरिका में तेल की कीमतों को प्रभावित करेगी।
सिंगापुर में हडसन कैपिटेल एनर्जी के एशिया क्षेत्र के निदेशक जोनाथन कोर्नाफेल कहते हैं कि नाइजीरिया से निरंतर आपूर्ति के लिए आप कोई निश्चित तारीख तय नहीं कर सकते। इसके बारे में कोई भी अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है। उनका कहना है कि उत्पादन के लिहाज से यह बेहद निराशाजनक है।
एक अन्य विशेषज्ञ का मानना है कि अभी जो कीमतें बढ़ रही हैं, उसमें डीजल का खास योगदान है। उनका कहना है कि नाइजीरिया से आपूर्ति प्रभावित होने की वजह से गैसोलीन और डीजल बनाने की क्षमता प्रभावित हुई है। रिफाइनरियों के रखरखाव में अधिक लागत आने और मुनाफे में कमी की वजह से रिफाइनरियों का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
नतीजतन इस साल डीजल की आपूर्ति में कमी आई है। एक सरकारी सूत्र ने गुरुवार को ही जानकारी दी कि रॉयल डच शेल पीएलसी के उत्पादन में कमी आई है और इसको पटरी पर लाने में अभी दो हफ्तों का समय लगेगा।