23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की कि “एंजल टैक्स” को समाप्त कर दिया जाएगा, जिससे स्टार्टअप्स और उनके निवेशकों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। एंजल टैक्स की शुरुआत 2012 के केंद्रीय बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य स्टार्टअप्स में निवेश के जरिए काले धन को सफेद करने की प्रथाओं पर रोक लगाना और फर्जी कंपनियों को पकड़ना था, क्योंकि ऐसे मामले सामने आए थे। इस कानून को हटाने से स्टार्टअप क्षेत्र में नई जान आने की उम्मीद है।
क्या है एंजल टैक्स?
एंजल टैक्स, जिसे आयकर अधिनियम की धारा 56 (2) (vii b) के रूप में जाना जाता है, स्टार्टअप्स द्वारा एंजल निवेशकों से जुटाए गए धन पर लगाया जाने वाला कर है। यह कर केवल उस राशि पर लागू होता है जो कंपनी के उचित बाजार मूल्य से अधिक हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी का उचित मूल्य 1 करोड़ रुपये है और वह एंजल निवेशकों से 1.5 करोड़ रुपये जुटाती है, तो अतिरिक्त 50 लाख रुपये पर यह कर लगेगा।
कर अधिकारी निवेशकों द्वारा दिए गए प्रीमियम को आय मानते थे, जिस पर लगभग 31 प्रतिशत कर लगता था। एंजल निवेशक अन्य निवेशकों से अलग होते हैं। ये हाई नेट वर्थ वाले व्यक्ति होते हैं जो अपनी व्यक्तिगत आय को बिजनेस स्टार्टअप्स या छोटी और मध्यम श्रेणी की कंपनियों में निवेश करते हैं।
स्टार्टअप्स को एंजल टैक्स से क्या परेशानी थी?
हाल के सालों में, कई स्टार्टअप्स ने एंजल टैक्स के बारे में बड़ी चिंता जताई है। उन्होंने इसे बहुत अनुचित बताया है। उनका कहना है कि किसी स्टार्टअप का सही बाजार मूल्य तय करना प्रैक्टिकल नहीं है। स्टार्टअप्स का आरोप है कि कर अधिकारी अक्सर इस मूल्य की गणना के लिए डिस्काउंटेड कैश फ्लो मैथड का इस्तेमाल करते हैं, जो स्टार्टअप्स की तुलना में कर अधिकारियों के पक्ष में माना जाता है।
स्टार्टअप्स ने बताया कि उन्हें 3-4 साल पहले जुटाए गए एंजल निवेश पर टैक्स नोटिस मिले। कुछ मामलों में, टैक्स और देरी से भुगतान के जुर्माने की कुल राशि मूल फंडिंग राशि से भी ज्यादा हो गई। 2019 में, जब एंजल टैक्स का विवाद चरम पर था, लोकलसर्किल्स के एक सर्वेक्षण में पता चला कि भारत में 50 लाख से 2 करोड़ रुपये के बीच पूंजी जुटाने वाले 73 प्रतिशत से अधिक स्टार्टअप्स को आयकर विभाग से एंजल टैक्स नोटिस मिला था।
क्या एंजल टैक्स सिर्फ घरेलू निवेशकों के लिए था?
नहीं। पिछले साल तक यह कर केवल देशी निवेशकों द्वारा किए गए निवेश पर लगाया जाता था। लेकिन अब इसे विदेशी निवेशकों के साथ होने वाले लेनदेन पर भी लागू कर दिया गया है। 2019 के केंद्रीय बजट में, सरकार ने एंजल टैक्स के नियमों को आसान बनाया था। उसने कहा था कि उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) में रजिस्टर स्टार्टअप्स को इस प्रावधान से छूट दी जाएगी।
लेकिन बारीकी से देखने पर पता चला कि यह सभी ऐसे स्टार्टअप्स के लिए पूरी छूट नहीं थी। यह केवल उन स्टार्टअप्स पर लागू होती थी जिन्हें अंतर-मंत्रालयी बोर्ड (IMB) नामक सरकारी निकाय ने प्रमाणित किया था।
IMB नौकरशाहों का एक समूह है जो यह प्रमाणित करता है कि कोई स्टार्टअप इनोवेटिव है या नहीं और आयकर अधिनियम, 1961 के तहत लाभ पाने के योग्य है या नहीं। अभी तक DPIIT में रजिस्टर 84,000 स्टार्टअप्स में से 1 प्रतिशत से भी कम IMB द्वारा प्रमाणित हैं।