बख्तरबंद या बुलेटप्रूफ कार की बात की जाए, तो सरकार या फौज का ही नाम जेहन में कौंधता है।
बरसों से राजनेताओं या वरिष्ठ अधिकारियों की हिफाजत के लिए यह कार उनकी सवारी बनती थी। लेकिन हालात अब बदल रहे हैं। अब आम हिंदुस्तानी की भी एक बड़ी जमात बुलेटप्रूफ कारों को अपनी सवारी बना रही है।
किसी भी उत्पाद की मांग बढ़ रही हो और कंपनियां चुपचाप बैठी रहें, यह तो हो ही नहीं सकता। इसीलिए बुलेटप्रूफ कारों के बढ़ते बाजार से पैसा कमाने के लिए जालंधर की लग्गर इंडस्ट्रीज और वाहन निर्माता हिंदुस्तान मोटर्स पूरी रफ्तार के साथ इस मैदान में आगे बढ़ रही हैं।
आम आदमी की शान
भारत में इस समय सालाना तकरीबन 500 बुलेटप्रूफ कारों की बिक्री होती है। इनमें से 30 या 40 कारों की चाबी आम नागरिकों के ही हाथ में जाती हैं। बेशक ये बेहद दौलतमंद होते हैं, लेकिन राजनीतिक या सरकारी रसूख उनके साथ नहीं होता। अब तो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी अपने कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ कारों पर भरोसा करने लगी हैं।
लग्गर इंडस्ट्रीज इस तरह की कार बनाने वाली बड़ी निजी कंपनी है। वह तकरीबन हरेक कंपनी की साधारण कार को बुलेटप्रूफ कार में बदल देती है। इन कारों की ओर बढ़ते आम नागरिकों के झुकाव को वह भी बखूबी सूंघ रही है।
कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘पिछले 3 साल में निजी हाथों में भी इन कारों की चाबियां जा रही हैं। आम नागरिकों की ओर से इनकी मांग में 20 फीसदी इजाफा देखा गया है। खास तौर पर दौलतमंद लोग जैसे शराब कारोबारी, फिल्मी सितारे, प्रॉपर्टी डीलर और बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनियां इन्हें लेना पसंद कर रही हैं।’
आयातित कारों का शौक
वैसे बुलेटप्रूफ कारों के शौकीन केवल लग्गर या अन्य भारतीय कंपनियों पर ही निर्भर नहीं हैं। इनमें से कई बीएमडब्ल्यू, ऑडी और मर्सडीज बेंज की लक्जरी बख्तरबंद कारों का आयात भी करते हैं।
सी के बिड़ला समूह की हिंदुस्तान मोटर्स भी इन कारों के तलबगारों का खयाल रखती है। कंपनी राजनेताओं या सरकारी अधिकारियों से इतर लोगों को ये कारें बेचती है। उसके ग्राहकों में विवादास्पद धार्मिक नेताओं और होटल व्यवसायियों की संख्या बढ़ रही है।
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी इन कारों को खरीदना पसंद कर रहे हैं। ओएनजीसी अपने लिए बख्तरबंद गाड़ियां महिंद्रा ऐंड महिंद्रा समूह की कंपनी महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स से खरीदती है। बीएमडब्ल्यू की बुलेटप्रूफ कारों का भी भारत में अच्छा बाजार है।
युवा ज्यादा शौकीन
उद्योग के सूत्रों की मानें, तो युवा और सफल व्यक्ति अपनी जिंदगी खतरे में जानकर ही इन कारों को खरीदने के बारे मंन सोचते हैं। लग्गर के एक अधिकारी ने बताया, ‘इनमें मेरठ के क्रिकेटर भी शामिल हैं। पहले 100 में से 10 कारें गैर सरकारी व्यक्ति के पास होती थीं, लेकिन अब 30 फीसदी कारें निजी हाथों में ही जाती हैं।’
लग्गर इंडस्ट्रीज की नींव पंजाब में 1980 के दशक में उस वक्त रखी गई थी, जब आतंकवाद अपने चरम पर था। उसने तकरीबन 2,000 वाहनों को बख्तरबंद बनाया है, जिनमें ज्यादातर आतंकवाद से लड़ रहे फौजी अधिकारियों और राजनेताओं के लिए थीं। अधिकारियों के मुताबिक बाजार अच्छा रहे, तो कंपनी हर साल तकरीबन 50 वाहनों को बख्तरबंद बनाती है।
ऐंबेसडर नंबर वन
हालांकि किसी भी कंपनी और किसी भी ब्रांड की कार या वाहन को बुलेटप्रूफ बनाया जा सकता है, लेकिन इस मामले में ऐंबेसडर सबसे आगे है। कंपनियां उसी को पसंद करती हैं।
सीके बिड़ला समूह की कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस प्रमुश्ख सोनी श्रीवास्तव बताती हैं, ‘जैसे ही हमें बताया जाता है कि अमुक कार को बख्तरबंद बनाना है, हम उसके सस्पेंशन पर खास ध्यान देते हैं। बख्तरबंद बनाने के बाद कार का वजन बढ़ जाता है और सस्पेंशन को इस लायक बना दिया जाता है।’ ऐंबेसडर के आम मॉडल का वजन तकरीबन 1,000 किलोग्राम होता है, लेकिन बख्तरबंद बनने के बाद वजन बढ़कर 1,850 किलो हो जाता है।
बुलेटप्रूफ गाड़ियां महंगी भी होती हैं। किसी भी कार को बख्तरबंद बनाने के बाद उसकी कीमत बढ़कर 4 गुना हो जाती है। मिसाल के तौर पर, ऐंबेसडर कार लगभग 5.5 लाख रुपये की होती है। लेकिन गोलियां झेलने वाली खास स्टील लगाने में 15 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं।
कार बनाने वाली कंपनियां निजी ठेकेदारों को ही बख्तरबंद बनाने का काम देती हैं। बख्तरबंद गाड़ियों में मित्सुबिशी पजेरो, टाटा सूमो, टाटा सफारी और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की स्कॉर्पियो और बोलेरो की मांग सबसे ज्यादा है।
किसी भी कार की गोलियां झेलने की ताकत उसमें लगाई की विशेष स्टील की परतों पर निर्भर करती है। महिंद्रा डिफेंस सिस्टम्स के मुख्य कार्यकारी ब्रिगेडियर खुतुब हई बताते हैं, ‘किसी वाहन को बख्तरबंद बनाने का काम खास तरीके से किया जाता है। यह उस शख्स की जान पर आए खतरे पर निर्भर करता है।’ कंपनी सालाना लगभग 250 वाहन सुरक्षा बलों को मुहैया कराती है।
बीएमडब्ल्यू सबसे अच्छी
बीएमडब्ल्यू की बख्तरबंद कार भी उसके नाम के माफिक ही होती है। यह कार मिसाइल का वार तक नाकाम कर सकती है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारी कुछ कारों में रडार प्रणाली होती है। यह प्रणाली हाथों में थामे जाने वाले रॉकेट लाँचर से दागी गई मिसााइल का भी पता लगा लेती है।’
ऐसी तकरीबन सभी कारों में 5 से 6 मिलीमीटर मोटाई की खास स्टील की चादर लगी होती है। इनमें लगे बुलेटप्रूफ कांच की मोटाई 40 या 50 मिलीमीटर होती है। कार के फर्श और छत को पॉलीकॉर्बोनेट शीट लगाकर मजूबत किया जाता है। यह शीट बम विस्फोट में निकले छर्रों का प्रहार भी झेल जाती है। इनमें टायर भी खास होते हैं, जो पंचर होने पर भी जबर्दस्त रफ्तार पकड़ सकते हैं।
इतनी हिफाजत के बाद अंदर बैठा व्यक्ति 9 मिलीमीटर हैंडगन, .375 मैग्नम, एके 47 और 7.26 रायफल से पूरी तरह बच जाता है। जैसे-जैसे सुरक्षा का स्तर बढ़ता जाता है, कीमत भी उठती जाती है।
किसी कार को बख्तरबंद बनाने का काम पूरा करने में भारतीय कंपनी को तकरीबन 35 दिन लगते हैं। इस्तेमाल करने वाले को सरकार से हरी झंडी भी लेनी पड़ती है। इस लंबी प्रक्रिया के कारण बड़ी तादाद में बख्तरबंद कारें नहीं बन पातीं। इनके जरिये कोई गलत काम होता है, तो भी कंपनियों को ही कठघरे में खड़ा किया जाता है।