देश को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के लिए पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के साथ ही वित्त मंत्री ने भले ही विदेशी कंपनियों को 200 करोड़ रुपये या इससे कम की बोलियों में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन घरेलू पंूजीगत वस्तु कंपनियां अब मूल्य वरीयता नीति की भी मांग कर रही हैं।
केईसी इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक (एमडी) एवं मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) विमल केजरीवाल ने कहा, ‘इस तरह की वरीयता के लिए मांग सामान्य है, क्योंकि यह कई अन्य देशों में भी प्रचलित है।’ अन्य पूंजीगत वस्तु कंपनियां ऐसी मांग की वाजिब वजह देख रही हैं। एक बड़ी पूंजीगत वस्तु कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं बताने के अनुरोध के साथ कहा, ‘सार्वजनिक खरीद नीति में हमें सिर्फ 50 प्रतिशत के लिए ही खरीद वरीयता मिलती है, जबकि कई देश मूल्य वरीयता मुहैया कराते हैं। उदाहरण के लिए, सऊदी अरब में स्थानीय निर्माताओं को 10 प्रतिशत अग्रिम राशि दी जाती है। हम भी इसी तरह की नीति की मांग कर रहे हैं।’
थर्मेक्स के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी एम एस उन्नीकृष्णन ने कहा, ‘कोरिया, जापान, चीन और यूरोप ऐसे कुछ देश हैं जो भारत में अनुबंध हासिल करते हैं। उद्योग अब न सिर्फ खरीद वरीयता की मांग कर रहा है बलिक मूल्य वरीयता पर भी जोर दे रहा है।’
उदाहरण के लिए, पिछले साल चीन की वुहान इंजीनियरिंग ने भारत में तलचर फर्टिलाइजर्स से प्रोजेक्ट ऑर्डर के लिए कोल गैसिफिकेशन एवं अमोनिया/यूनिया पैकेज हासिल किया। अप्रैल में, भारत की इंजीनियरिंग कंपनी एलऐंडटी ने कहा कि उसे वुहान इंजीनियरिंग से समान परियोजना के लिए उपकरण ऑर्डर मिला है।
2019 में इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि वुहान इंजीनियरिंग ने कई घरेलू पंूजीगत वस्तु कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के बीच उर्वरक संयंत्र ऑर्डर हासिल किया था। भारत की पूंजीगत वस्तु कंपनियां अब मूल्य वरीयता नीति के जरिये इस चलन में बदलाव लाने की संभावना तलाश रही हैं। इंडियन ब्रांड इक्विटी फांउडेशन के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में 3.28 अरब डॉलर मूल्य की इलेक्ट्रिक मशीनरी एवं उपकरणों और पूरे वित्त वर्ष 2019 में 9.86 अरब डॉलर मूल्य के उपकरणों का आयात किया।