कंपनियां डेरिवेटिव अनुबंधों से हुए नुकसान की सूचना देने के झंझट से मुक्ति पा सकती हैं।
यदि ये कंपनियां यह साबित कर सकती हैं कि उनका लेन-देन हेज है और काल्पनिक नहीं है, तो इन्हें यह छूट मिल सकती है।डेरिवेटिव अनुबंधों के लिए मानकों का खुलासा किए जाने के संबंध में इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) की ओर से दिए गए एक ताजा स्पष्टीकरण में कहा गया था कि कंपनियों को वित्तीय वर्ष 2007-08 के बाद ऐसे लेन-देन से हुए मार्क-टु-मार्केट नुकसान का ब्यौरा पेश करना होगा।
लेकिन अब अधिकारियों का कहना है कि कंपनियों को डेरिवेटिव अनुबंधों पर नुकसान का ब्यौरा देने की प्रक्रिया से छूट मिल सकती है। अधिकारियों के मुताबिक फिलहाल इस संबंध में लेखा मानकों में पर्याप्त व्यवस्था मौजूद है।डेरिवेटिव लेनदेन से संबंधी 29 मार्च के सर्कुलर पर चर्चा करते हुए आईसीएआई के अध्यक्ष वेद जैन ने कहा कि लेखा मानक प्राधिकरण इस मुद्दे पर कोई स्पष्टीकरण जारी करने की योजना नहीं बना रहा है।
उन्होंने कहा, ‘एएस-11 और एएस-30 जैसे मानकों में हेजिंग लेनदेन पर पर्याप्त गाइडलाइंस हैं।’डेरिवेटिव लेनदेन संबंधी ब्यौरों के खुलासे से वित्तीय वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही के लिए कॉरपोरेट मुनाफे पर विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना है।
हेज एक तकनीक है जिसका उद्देश्य वित्तीय जोखिम को कम करना या समाप्त करना है। हेज का एक प्रमुख उदाहरण ऑटोमोबाइल इंश्योरेंस हो सकता है जिसमें मालिक खरीदारी करता है वहीं अन्य उद्देश्य के लिए स्पेक्ट्रम कंपनियां मुद्रा या इक्विटी प्रयोग के डेरिवेटिव पर जटिल हेज में शामिल होती हैं।
अकाउंटिंग विशेषज्ञ इस पर सहमत हैं कि कंपनियां डेरिवेटिव नुकसान की सूचना मुहैया कराने से मुक्ति पा सकती हैं यदि वे इसे हेज के रूप में घोषित करें।एसएस कोठारी मेहता ऐंड कंपनी के प्रबंधन भागीदार के. एस. मेहता ने कहा, ‘अतर्निहित बाजार अनुबंध के रूप में यह संभव है जो हेज में पहले से ही शामिल है। नुकसान पर फैसला लिए जाने से पहले दोनों व्यापार अनुबंध के साथ-साथ हेजिंग अनुबंध पर विचार किया जाएगा।’
इस मसले को ठीक से समझाते हुए एक और अकाउंटिंग विशेषज्ञ ने कहा, ‘आरबीआई गाइडलाइंस के मुताबिक कंपनी विदेशी मुद्रा में अनुमान नहीं लगा सकती। इसलिए विदेशी मुद्रा में लाभ या नुकसान का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।’