कहते हैं, तकदीर बहादुरों का ही साथ देती है। रतन टाटा से बेहतर इसकी मिसाल कोई नहीं हो सकता।
इसीलिए दुनिया जीतने का ख्वाब देखने की जो हिम्मत टाटा ने बरसों पहले से दिखानी शुरू की थी, आज उसी ने उन्हें कारोबार की दुनिया के सिकंदर का दर्जा दिला दिया। उनके विश्वविजय अभियानों पर नजर डालने से यह साफ हो जाता है कि चाहे अभियानों की संख्या हो या फिर उसके लिए खर्च की गई रकम, किसी भी चीज में उनका कोई सानी नहीं है।
पिछले आठ सालों के भीतर उन्होंने 35 विदेशी कंपनियों पर कब्जा तो जमाया ही है, इन अभियानों पर कुल 78,347 करोड़ रुपए भी पानी की तरह बहाए हैं। जाहिर है, अगर उनके द्वारा चलाया जा रहा यह विश्व विजय अभियान अगर मोटे मुनाफे की शक्ल में नहीं बदलता तो टाटा जगुआर और लैंड रोवर जैसे बड़े अधिग्रहण को अंजाम देने के लिए वह इतनी कवायद नहीं करते।
मिसाल के तौर पर टेटली कंपनी को ही खरीदने के टाटा के फैसले को लीजिए, जिसने टाटा टी को भारतीय दायरे से निकालकर पूरी दुनियाभर में उसका साम्राज्य कायम कर दिया। या फिर देवू के कमर्शियल वाहन कारोबार की तरफ नजर डालिए, जिसने टाटा की झोली में जबरदस्त मुनाफे की बरसात कर रखी है। देवू को ही टाटा के विदेशी अभियानों में से सबसे ज्यादा कामयाब माना जाता है।
जब देवू को टाटा ने अपने कब्जे में लिया था, तो उसकी बाजार हिस्सेदारी गिरकर 10 फीसदी तक पहुंच चुकी थी। आज देवू की बाजार हिस्सेदारी 35 फीसदी से भी ज्यादा की ऊंचाई पर है। इसी तरह होटल कारोबार में भी टाटा ने जो रणनीति अपनाई, उसने उन्हें नई ऊंचाइयों पर पहुंचने में मदद दी। होटलों को कब्जाने के लिए टाटा चाहे वह अमेरिका हो या स्विट्जरलैंड, कहीं भी पहुंचने में कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
इनके अलावा कारोबार का सबसे बड़ा कोरस का श्रेय भी टाटा को ही दिया जाता है, जिसके तहत उन्होंने स्टील कंपनी कोरस को खरीद कर पहली बार छोटी मछली के बड़ी को निगलने का कारनामा कर दिखाया था। बहरहाल, टाटा के विदेशी अभियानों की सूची बहुत लंबी है और कारोबार की दुनिया इस सिकंदर को सलाम करने के सिवा कुछ नहीं कर सकती।
80 अरब येन का कर्ज
मित्सुबिशी यूएफजे फाइनेंशियल ग्रुप और मिजुहो फाइनेंशियल ग्रुप जगुआर और लैंड रोवर सौदे में वित्तीय मदद के तौर पर टाटा मोटर्स को 80 अरब येन का कर्ज मुहैया कराएंगे। शेष कर्ज सिटीग्रुप, जेपी मॉर्गन चेज, बीएनपी परीबा, आईएनजी स्टैंडर्ड चार्टर्ड और एसबीआई की ओर से उपलब्ध कराया जाएगा।
..मगर बाजार दोनों से खफा
गुरुवार को टाटा मोटर्स गिरकर दो महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया। कारोबार के अंत में 3.56 प्रतिशत की गिरावट के साथ यह 655.20 रुपए पर बंद हुआ। इसी तरह, अमेरिका में फोर्ड का शेयर भी दो फीसदी गिर गया।
हर बाजी को जीतना हमें आता है…
टाटा पावर ने इंडोनेशिया की दो ताप विद्युत कंपनियों में एक अरब डॉलर में खरीदी 30 फीसदी हिस्सेदारी।
ब्रिटिश इस्पात कंपनी कोरस को 9 अरब डॉलर की भारी-भरकम रकम में खरीदकर टाटा स्टील दुनिया की 59वीं बड़ी स्टील कंपनी से लंबी छलांग मारकर पांचवीं पायदान पर पहुंच गई। किसी भी भारतीय कंपनी द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा अधिग्रहण है।
अमेरिकी कंपनी ग्लासियो में 67 करोड़ डॉलर में हिस्सेदारी खरीदी।
टाटा टी ने अमेरिकी कॉफी कंपनी 8 ओ क्लॉक को 1000 करोड़ रुपए में खरीदा।
टाटा केमिकल्स ने ब्रिटेन की ब्रूनर कंपनी में 508 करोड़ रुपए में हिस्सेदारी खरीदी।
टाटा स्टील ने थाईलैंड की मिलेनियम स्टील को 1800 करोड़ रु. में खरीदा।
टाटा कंसलटेंसी ने बीपीओ कंपनी कोमीकॉन को 108 करोड रु. में खरीदा।
टाटा कंसलटेंसी ने ऑस्टे्रलियाई कंपनी को खरीदा।
टाटा टेक्नॉलजी ने ब्रिटिश कंपनी आईएनसीएटी को 411 करोड़ रुपए में खरीदा।
टाटा टी ने गुड अर्थ क्रॉप को 0.32 करोड़ डॉलर में खरीदा।
वीएसएनएल ने टेलीग्लोब को 2.39 करोड़ डॉलर में खरीदा।
टाटा स्टील ने सिंगापुर की नैटस्टील को खरीदा 1300 करोड़ रुपए में।
टाटा मोटर्स ने कोरियाई कार कंपनी देवू कमर्शियल को 459 करोड़ रु. में खरीदा।
टाटा टी ने ब्रिटेन की टेटली को 1870 करोड़ रु. में खरीदा।
इन सौदों के अलावा जर्मनी, मोरक्को, स्पेन और दक्षिण अफ्रीका जैसे चंद अन्य मुल्कों में कंपनियां या उनकी हिस्सेदारी खरीदने में टाटा सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं।