एचआईस्मेल्ट लाइसेंस के लिए कर रही है चार भारतीय कंपनियों से बातचीत

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 1:04 AM IST

वैश्विक खनन कंपनी रियो टिंटो की इकाई एचआईस्मेल्ट कॉर्पोरेशन प्राइवेट लिमिटेड लौह अयस्क और नॉन-कोकिंग कोल के इस्तेमाल से इस्पात उत्पादन की प्रौद्योगिकी के लाइसेंस के लिए चार भारतीय कंपनियों से बातचीत कर रही है।


इन कंपनियों में सरकारी कंपनी नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एनएमडीसी) भी शामिल है। कंपनी के प्रबंध निदेशक स्टीफन वेबर ने बताया कि ये भारतीय कंपनियां 50 वैश्विक कंपनियों में शामिल हैं जिनमें से अधिकांश चीन की कंपनियां हैं।

उन्होंने कहा कि साधारण कोयला और लौह अयस्क के इस्तेमाल की श्रेष्ठ प्रौद्योगिकी और डिजाइन से एकीकृत इस्पात संयंत्र के अनुमानित खर्च में चीन में 10 प्रतिशत, भारत में 20 प्रतिशत और पश्चिमी देशों में 30 प्रतिशत तक की कमी आएगी। उन्होंने कहा कि इससे स्टील मिलों के संचालन खर्च में 10 से 20 प्रतिशत तक की कटौती होगी। उच्च फॉस्फोरस और एल्युमिना के साथ यह प्रौद्योगिकी अयस्क के लिए अपेक्षाकृत अधिक उदार भी है।

वैसे यह भारत के लिए फायदेमंद है जहां इन तत्वों से लौह अयस्क दूषित हो गया है। वेबर ने कहा कि इसके साथ-साथ इससे संचालन के लिए कम भूमि की जरूरत होगी और भारत जैसे देशों के लिए यह आसान हो सकती है जहां भूमि अधिग्रहण की समस्याओं के कारण कई परियोजनाएं बाधित हुई हैं। उन्होंने कहा कि पर्थ के पास इसी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कंपनी के संयंत्र से नुकसानदायक ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन पारंपरिक इस्पात संयंत्रों की तुलना में कम होगा।

एचआईस्मेल्ट के प्रबंधक (तकनीकी एवं बिक्री) ब्रायन मैकडोनल्ड  कुछ भारतीय कंपनियों के साथ बातचीत के लिए भारत की 10 दिवसीय यात्रा पर हैं। इन कंपनियों ने इस प्रौद्योगिकी में अपनी दिलचस्पी दिखाई है। एचआईस्मेल्ट ने दो चीनी कंपनियों लायवू स्टील और हुआइगैंग के साथ प्रौद्योगिकी लाइसेंस समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं और 10 और परियोजनाओं के लिए संभाव्यता अध्ययन किया है।

वेबर ने कहा, ‘एक भारतीय कंपनी के लिए विस्तृत संभाव्यता अध्ययन किया गया है।’ वैसे, उन्होंने इस नई प्रौद्योगिकी में दिलचस्पी दिखाने वाली भारतीय कंपनियों के नामों का खुलासा नहीं किया है। इस प्रौद्योगिकी की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह कचरे का इस्तेमाल कर हॉट मेटल का उत्पादन कर सकती है। इसलिए इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल न सिर्फ नई परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है बल्कि मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने में भी मददगार साबित हो सकती है।

यह प्रौद्योगिकी प्रति वर्ष 8,00,000 लाख टन हॉट मेटल की उत्पादन क्षमता के 6 मीटर व्यास वाले पोत पर दोषहीन साबित हुई है। इस प्रौद्योगिकी के 8 मीटर के व्यास वाले पोत पर भी परीक्षण की योजना है जिससे हॉट मेटल की सालाना क्षमता को बढ़ा कर 20 लाख टन किया जा सके।

वेबर ने कहा कि रियो टिंटो ने इस प्रौद्योगिकी पर पिछले 20 वर्षों के दौरान तकरीबन 40 अरब रुपये खर्च किए हैं। इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल पर्थ के पास एचआईस्मेल्ट के 8,00,000 टन सालाना क्षमता वाले अयस्क संयंत्र में पिछले दो वर्षों से किया जा रहा है।

(संवाददाता की ऑस्ट्रेलिया यात्रा वहां की सरकार की ओर से प्रायोजित थी।)

First Published : May 23, 2008 | 12:07 AM IST