इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार, लोगों के वेतन में जबरदस्त इजाफे और बदलती जीवन शैली का मिला जुला असर ही कहा जा सकता है, जिसकी वजह से ‘बड़ी कारों’ यानी लक्जरी कारों के खरीदार धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं।
देश में इस समय इन्हीं कारों का बाजार सबसे तेजी से बढ़ रहा है। एक जमाना था, जब ऊंची कीमत होने के कारण आम भारतीय लक्जरी कारों के पास तक नहीं फटकता था। इनके खरीदार महानगरों में और वे भी गिने चुने होते थे। लेकिन आज तस्वीर काफी बदल गई है।
आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि मध्यम वर्ग लक्जरी कारों की ओर तेजी से बढ़ रहा है। संपन्न तबका तो मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू जैसी ‘सुपर लक्जरी कारों’ को भी नहीं छोड़ रहा। लक्जरी कारों के मामले में दुनिया की मानी हुई कार कंपनी बीएमडब्ल्यू इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने भारत में वर्ष 2006-07 में 171 कारें बेची थीं, लेकिन पिछले वित्त वर्ष में यह आंकड़ा बढ़कर 297 हो गया।
इसी तरह मर्सिडीज बेंज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की एस-क्लास कार की बिक्री भी तेजी से बढ़ रही है। उसने पिछले वित्त वर्ष में इस श्रेणी की 518 कारें बेची थीं, जबकि उससे एक साल पहले यह आंकड़ा केवल 249 था। मर्सिडीज और बीएमडब्ल्यू तो बहुत भारी जेब वालों के लिए हैं, लेकिन उनके मुकाबले कम कीमत वाली लक्जरी कारों का बाजार भी अच्छा खासा गर्म है।
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी सी क्लास की अपनी कार एसएक्स 4 को ही लक्जरी मॉडल बताती है, जिसकी कीमत 7 लाख रुपये से कुछ अधिक है। इसी तरह हुंडई के पास सोनाटा और वेरना हैं। वेरना की कीमत एसएक्स 4 के आसपास है, जबकि सोनाटा 10 लाख रुपये से ज्यादा की कीमत वाली है। इसी तरह टाटा की इंडिगो या स्कोडा की ऑक्टेविया भी लक्जरी कारें हैं, लेकिन इन सभी की कीमत 20 लाख रुपये से कम है।
पिछले वित्त वर्ष में देश में सी क्लास की लक्जरी कारों की बिक्री में लगभग 64 फीसद का इजाफा हुआ। इस बाजार मं। मारुति की हिस्सेदारी लगभग 24 फीसद है। लेकिन लक्जरी कारों की बिक्री में तेजी आने की क्या वजह है और उसमें कितनी तेजी आने की संभावना है? इस बारे में मारुति के प्रवक्ता ने ज्यादा कुछ कहने से इनकार कर दिया। लेकिन उन्होंने कहा कि लक्जरी कारों का बाजार अभी अच्छा खासा आगे बढ़ेगा।
कार बनाने के मामले में देश की दूसरे नंबर की कंपनी हुंडई को भी लक्जरी कारों के बाजार से उम्मीद है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि सी क्लास की कारों की बिक्री में तो अच्छा खासा इजाफा हो सकता है। लेकिन उन्होंने कहा कि छोटा बाजार होने के कारण अभी इसमें ग्राहकों के रुख और उनकी पसंद के बारे में पुख्ता तौर पर बहुत कुछ नहीं कहजा जा सकता। स्कोडा से बिजनेस स्टैंडर्ड ने बार-बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कंपनी की ओर से कोई जवाब नहीं आया। टाटा मोटर्स से भी संपर्क नहीं हो सका।
अलबत्ता मर्सिडीज के प्रवक्ता बाजार को काफी चमकदार मान रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ समय में लोगों के पास पैसा बढ़ा है और उसके साथ ही महंगी कारों की तरफ उनका रुझान भी बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा भारतीय युवा वर्ग विदेशी रहन सहन और जीवन शैली से प्रभावित हो रहा है, जिससे लक्जरी कारों की मांग बढ़ रही है।
बाजार के जानकार और वाहन विशेषज्ञों की राय कुछ अलग है। वे इस बाजार में संभावनाएं तो मान रहे हैं, लेकिन इसकी वजह से छोटी कारों को चोट पहुंचने की बात से वे इनकार करते हैं। उनके मुताबिक लक्जरी कारों का बाजार फिलहाल बहुत छोटा है, इसी वजह से वहां विकास की रफ्तार इतनी ज्यादा है। लेकिन भारत में अब भी आम आदमी छोटी कार ही पसंद करता है क्योंकि उसकी पारिवारिक जरूरतों को यह कार आराम से पूरा कर देती है।
इसलिए छोटी कार के बाजार पर कोई भी असर पड़ने की संभावना नहीं है। मारुति और हुंडई के प्रवक्ताओं ने भी छोटी कारों के अपने बाजार में लक्जरी कारों की वजह से मंदी आने की बात को सिरे से खारिज कर दिया।