मंदी की मार अब भारतीय कंपनियों के वैश्विक विस्तार पर भी पड़ती दिख रही है। वैश्विक अधिग्रहण के मोर्चे पर बयार अब भारतीय उद्योग जगत के पक्ष में नहीं बह रही है।
लैंड रोवर-जगुआर जैसे कई कई विदेशी सौदों को अंजाम देने वाली भारतीय कंपनियों को अब ऐसे अभियानों में कई मोर्चों पर रुकावटों का सामना करना पड़ रहा है। यह चाहे एस्सार स्टील की अमेरिकी इस्पात कंपनी एस्मार्क को 4500 करोड़ रुपये में खरीदने की कोशिश हो, इजरायली कंपनी टारो फार्मास्युटिकल के लिए सन फार्मास्युटिकल की कोशिश या फिर असार्को के लिए स्टरलाइट की कोशिश हो, भारतीय कंपनियां अपने लक्ष्य को हासिल करने में विफल रही हैं।
पिछले सप्ताह टारो ने कीमत निर्धारण को लेकर सहमति नहीं बन पाने की वजह से सन के साथ 1816 करोड़ रुपये के विलय की पेशकश को वापस ले लिया। स्टरलाइट के मामले में भारतीय कंपनी को पसंदीदा बोलीदाता के रूप में शामिल किए जाने के बाद ग्रुपो मेक्सिको ने प्रस्ताव भेजा था। लेकिन स्टरलाइट को तब तगड़ा झटका लगा जब अमेरिकी अदालत ने इस अधिग्रहण की मुहिम को नकार दिया। इसी तरह एस्सार की एस्मार्क के अधिग्रहण की कोशिश रंग नहीं ला सकी।
हालांकि एस्सार को अमेरिकी इस्पात कंपनी के प्रबंधन का समर्थन हासिल था, लेकिन अंत में बोली में इजाफा कर रूसी कंपनी सेवरस्ताल इसे अपनी झोली में डालने में सफल हो गई। सेवरस्ताल के कूदने के बाद एस्सार ने अपनी बोली में इजाफा कर इसे 17 डॉलर यानी 680 रुपये से 760 रुपये प्रति शेयर तक कर दिया। एस्सार समूह के एमऐंड ए प्रमुख (हाइड्रोकार्बन एवं प्रौद्योगिकी) सुदीप रुंगटा ने कहा, ‘भारतीय कंपनियां विदेश में अधिग्रहण को लेकर ज्यादा चौकस हो गई हैं। कंपनियां विदेश में अधिग्रहण के चयन पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं। कोष जुटाना भी महंगा सौदा हो गया है।’