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कर्नाटक सरकार के उस विधेयक पर उद्योग जगत ने नाराजगी जताई है जिसके तहत निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए प्रबंधन की नौकरियों में 50 फीसदी और गैर-प्रबंधन नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण देने की बात कही गई है। इस विधेयक को उद्योग जगत के नेताओं और उद्योग संगठनों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय आईटी कंपनियों के प्रतिनिधि संगठन नैसकॉम ने इस फैसले को काफी चिंताजनक करार दिया है। हालांकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस विधेयक को फिलहाल टाल दिया गया है।
नैसकॉम ने एक बयान में कहा है कि कर्नाटक स्टेट एम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल इंडस्ट्रीज फैक्टरीज इस्टाब्लिशमेंट ऐक्ट बिल, 2024 के बारे में उसके सदस्यों ने काफी निराशा और चिंता जताई है। राज्य मंत्रिमंडल ने मंगलवार को इस विधेयक को मंजूरी दी थी। अब इसे विधानमंडल के मौजूदा सत्र में ही पेश किए जाने की संभावना है। उद्योग जगत के नेताओं ने कहा है कि यह भेदभावपूर्ण और पीछे की ओर ले जाने वाला निर्णय है।
मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन सर्विसेज के चेयरमैन और प्रमुख आईटी कंपनी इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ मोहनदास पई ने एक्स पर जारी एक पोस्ट में कहा, ‘इस विधेयक को रद्द कर देना चाहिए। यह भेदभावपूर्ण, पीछे की ओर लौटने वाला और संविधान के खिलाफ है। क्या सरकार को यह प्रमाणित करना है कि हम कौन हैं? यह फासीवादी विधेयक है और यह विश्वास नहीं होता कि कांग्रेस इस तरह का विधेक ला सकती है। क्या निजी क्षेत्र की नियुक्ति समिति में किसी सरकारी अधिकारी को बिठाया जाएगा? क्या लोगों को भाषा की परीक्षा देनी होगी?’
बायोकॉन की कार्यकारी चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने एक्स पर जारी एक पोस्ट में लिखा है, ‘प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता है। हमारा उद्देश्य स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना है। हमें इस कदम से प्रौद्योगिकी में अपनी अग्रणी स्थिति को प्रभावित नहीं करना चाहिए। ऐसे प्रावधान होने चाहिए ताकि अत्यधिक कुशल कर्मचारियों की नियुक्ति को इस नीति से छूट मिल सके।’
नैसकॉम ने एक बयान में कहा, ‘कर्नाटक के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी क्षेत्र काफी अहम रहे हैं। बेंगलूरु को दुनिया भर में भारत का सिलकन वैली कहा जाता है। मगर इस प्रकार के विधेयक को देखकर काफी निराशा होती है जो उद्योग की वृद्धि, रोजगार और राज्य के लिए वैश्विक ब्रांड को प्रभावित करेगा।’
यह विधेयक निजी क्षेत्र में निचले पदों (ग्रेड सी एवं डी) पर स्थानीय लोगों के लिए 100 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करता है। इसके अलावा यह प्रबंधन के पदों पर 50 फीसदी और गैर-प्रबंधन पदों पर 75 फीसदी कन्नड़ लोगों को नियुक्त करने का निर्देश देता है।
एसोचैम कर्नाटक के को-चेयरमैन आरके मिश्र ने एक्स पर जारी एक पोस्ट में इस विधेयक को अदूरदर्शी करार दिया। उन्होंने लिखा, ‘कर्नाटक सरकार का एक अन्य मेधावी पहल। स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण और निगरानी के लिए हरेककंपनी में सरकारी अधिकारी की नियुक्ति। यह भारतीय आईटी एवं जीसीसी को हतोत्साहित करेगा। यह अदूरदर्शिता है।’
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मंगलवार को एक्स पर जारी एक पोस्ट में इस निर्णय के बारे में कहा कि यह फैसला इसलिए लिया जा रहा है ताकि कन्नड़ के लोग कन्नड़ की धरती पर नौकरी पाने से वंचित न रहें। उन्हें अपनी मातृभूमि में सुकून से जीवन जीने का अवसर मिलनी चाहिए।
इस विधेयक में स्थानीय उम्मीदवार को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो कर्नाटक में पैदा हुआ हो, कम से कम 15 साल तक राज्य का निवासी हो और स्पष्ट रूप से कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में समर्थ हो।
कर्नाटक चैम्बर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (केसीसीआई) के प्रवीण अगाडी के अनुसार, यह निर्णय एक दोधारी तलवार है क्योंकि यह सूचना प्रौद्योगिकी एवं निर्माण क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के साथ-साथ लघु, सूक्ष्म एवं मझोले उपक्रम (एमएसएमई) को भी प्रभावित करेगा।
अगाडी ने कहा, ‘कर्नाटक आईटी और निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रबंधन स्तर के कर्मचारियों के लिए काफी हद तक बाहर के लोगों पर निर्भर है। दूसरी ओर, गैर-प्रबंधन स्तर पर अधिकतर एमएसएमई और निर्माण क्षेत्र की बड़ी कंपनियां प्रवासी आबादी पर निर्भर हैं। अगर यह नियम लागू हो गया तो उद्योग को स्थानीय कर्मचारी कहां से मिलेंगे। ऐसे में उद्योग को सरकार से मिलने वाले फायदे का नुकसान शुरू हो जाएगा।’
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य के राजधानी में 51 फीसदी से अधिक आबादी प्रवासी थी। इसके अलावा, कर्नाटक में अंतरराज्यीय प्रवास का अनुपात 37.82 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय औसत महज 4.48 फीसदी है। साल 2011 में अन्य राज्यों से कर्नाटक में आने वाले प्रवासियों की शुद्ध संख्या 32 लाख थी, जबकि बाहर जाने वाले प्रवासी की संख्या महल 25 लाख थी।