आईटी दिग्गज इन्फोसिस और उसके मुख्य कार्याधिकारी सलिल पारेख ने 25 लाख रुपये चुकाने के लिए सहमति जताकर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ कथित भेदिया कारोबार उल्लंघन से जुड़ा मामला सुलझा लिया है। यह मामला जुलाई 2020 में इन्फोसिस और अमेरिकी वैश्विक परिसंपत्ति प्रबंधक वैनगार्ड के बीच हुई एक भागीदारी से जुड़ा हुआ है।
समझौते के तहत, इन्फोसिस वैनगार्ड को क्लाउड-आधारित रिकॉर्ड कीपिंग प्लेटफॉर्म मुहैया कराएगी। सेबी के नियमों के अनुसार दोनों कंपनियों के बीच साझेदारी को अप्रकाशित मूल्य संवेदनशील जानकारी (यूपीएसआई) माना जाना चाहिए था। लेकिन निर्यात किया गया सॉफ्टवेयर ऐसा करने में विफल रहा।
सेबी के इनसाइडर ट्रेडिंग (पीआईटी) रेग्युलेशंस के तहत प्रमुख घोषणाओं और सौदों को यूपीएसआई कहा जाता है, ताकि सूचना के हेरफेर या दुरुपयोग को रोका जा सके। जानकारी के गलत इस्तेमाल या दुरुपयोग से शेयर की कीमतों पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है।
बाजार नियामक ने अगस्त 2023 में इन्फोसिस को कारण बताओ नोटिस जारी किया था, जिसके बाद कंपनी ने सहमति से निपटान याचिका दायर की थी, जिसके तहत कथित गलत कार्य करने वाला व्यक्ति जुर्माने का भुगतान करने या बाजार प्रतिबंध या दोनों के तहत अपराध को स्वीकार या अस्वीकार किए बिना मामले को सुलझा सकता है।
इन्फोसिस द्वारा सेटलमेंट आवेदन सेबी की उच्च पदस्थ सलाहकार समिति (एचपीएसी) द्वारा मंजूर किया गया था। अपने आवेदन में आईटी फर्म ने कहा कि कंपनी में यूपीएसआई की पहचान करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को मार्गदर्शन और मंजूरी के लिए ऑडिट कमेटी और बोर्ड के समक्ष रखा गया है। इसे लिखित और स्वीकृत नीति में भी परिवर्तित किया गया है।
कंपनी ने अपने आवेदन में कहा, ‘किसी भी सौदे की टोटल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू (टीसीवी) की इन्फोसिस के वार्षिक राजस्व के साथ तुलना करने के लिए सालाना औसत राजस्व में विभाजित करने की प्रणाली के बारे में भी कंपनी की लेखा परीक्षा समिति और बोर्ड को सूचित किया गया है।’ इन्फोसिस के शेयर में गुरुवार को करीब 2 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई।