सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर ने भारत सरकार के उस आदेश के खिलाफ अदालती कदम की मांग की है जिसके जरिये उससे कहा गया था कि कंपनी अपने माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म से कुछ सामग्री हटाए। कर्नाटक उच्च न्यायालय में 5 जुलाई को दायर याचिका में ट्विटर ने कहा है कि सामग्री हटाने के लिए दिए गए आदेश प्रक्रियागत रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 69ए के जरिये अनुपालन योग्य नहीं हैं।
ट्विटर ने अपनी याचिका में कहा है कि जिस सामग्री को हटाने को कहा गया है वह धारा 69ए के तहत प्रतिबंधित करने योग्य सामग्री में नहीं आती। याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रतिबंध लगाने के नियम एक समीक्षा प्रणाली की व्यवस्था करते हैं जहां सामग्री को प्रतिबंधित करने के आदेश की समीक्षा की जानी होती है और समीक्षा समिति को नियम 14 के तहत निष्कर्षों को रिकॉर्ड करना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि इन नियमों के तहत जारी किए गये निर्देश अधिनियम की धारा 69ए के उपखंड (1) के अनुरूप हैं या नहीं।
ट्विटर ने अपनी याचिका में कहा, ‘याची की जानकारी के मुताबिक निर्णयों की कोई समीक्षा नहीं की गई। इस मामले में प्रतिवादी पक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।’
ट्विटर ने यह भी कहा कि भारत सरकार के कदम असंगतिपूर्ण हैं। उसने कहा कि धारा 69ए, ट्विटर खातों को बंद करने से संबंधित नहीं है। ट्विटर ने कहा कि धारा 69 ए सूचनाओं पर रोक लगाने का अधिकार देती है और सूचनाओं को अधिनियम की धारा 2(1)(5) में परिभाषित किया गया है। धारा 69 ए का विस्तार उस सूचना को रोकने तक है जो पहले से उपलब्ध है और वह सूचनाओं को तैयार होने, प्रसारित होने, प्राप्त होने या भंडारित होने से नहीं रोकती।
आईटी अधिनियम की धारा 69ए केंद्र को यह अधिकार देती है कि वह सोशल मीडिया की मध्यवर्ती कंपनियों को उस स्थिति में सामग्री को प्रतिबंधित करने का आदेश दे जब मामला देश की अखंडता और संप्रभुता, देश की रक्षा, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मित्रवत संबंधों से जुड़ा हो या फिर उपरोक्त से संबंधित किसी भी तरह का अपराध होने की आशंका हो।
ट्विटर ने याचिका में इस बात का उल्लेख भी किया कि भारत सरकार प्रतिबंध के आादेशों के पक्ष में समुचित कारण नहीं देती। उसने याचिका में कहा कि जिस सामग्री को लेकर यह चुनौती दी गई है, वह भारतीय संविधान की अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में आता है। इनमें से कई यूआरएल में राजनीतिक और पत्रकारीय सामग्री है।