दूरसंचार विभाग (डीओटी) ने एक प्रस्ताव तैयार किया है, जिसके सभी ऑपरेटरों को 6.2 मेगाहट्र्ज के दायरे से बाहर के स्पेक्ट्रम आवंटित कराने के लिए केवल एक बार स्पेक्ट्रम शुल्क देना होगा फिलहाल इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाने के लिए दूरसंचार आयोग से स्वीकृति लेना बाकी है।
जीएसएम ऑपरेटरों की ओर से प्रवेश शुल्क के रूप में चुकाई जाने वाली राशि से उन्हें सिर्फ 6.2 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम मिलेगा। विभाग की योजना इस राशि को 6.2 से भाग करने की है ताकि प्रति मेगाहट्र्ज की कीमत का पता लगाया जा सके। फिर इस कीमत को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम (6.2 मेगाहट्र्ज के बाहर) से गुणा कर कुल राशि की गणना की जाएगी जो सरकार पर बकाया है।
भारतीय स्टेट बैंक की वर्तमान ब्याज दर के मुताबिक जिस दिन से कंपनियों ने 6.2 मेगाहट्र्ज से बाहर जितना अधिक स्पेक्ट्रम लिया है, से लेकर 30 जून 2008 तक के लिए उन्हें पैनल ब्याज दर चुकाने के लिए भी कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर कंपनी 6.2 मेगाहट्र्ज के लिए 620 करोड़ रुपये चुकाती है, तो उसके लिए चुकाती है तो उसके हर मेगाहट्र्ज की कीमत 100 करोड़ रुपये होगी।
अगर कंपनी 10 मेगाहट्र्ज लेती है, तो उसने 6.2 मेगाहट्र्ज के अलावा 3.8 मेगाहट्र्ज अतिरिक्त स्पेक्ट्रम लिया। ऐसी सूरत में वह सरकार को 3.8#100 करोड़ या 380 करोड़ रुपये देगी। इस प्रस्ताव को काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि जीएसएम ऑपरेटरों को मुफ्त में स्पेक्ट्रम मिल रहे हैं और इस सीमित संसाधन के लिए ऐसी प्रणाली होनी चाहिए, जिससे उन्हें भुगतान के लिए मजबूर किया जा सके।