दुनिया भर में रिफाइनरी कंपनियों के विस्तार की योजनाओं में देरी से होने वाले लाभ का फायदा उठाने के लिए भारतीय कंपनियां अपने विस्तार की योजना बना रही हैं।
चाहे रिलायंस हो या एस्सार, इस मौके को र्कोई चूकने के लिए तैयार नहीं है।भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की तीसरे नंबर की रिफाइनरी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड अपनी हालिया क्षमता बढ़ाने के लिए प्रति वर्ष 3.4 करोड़ टन उत्पादन करने वाली नई रिफाइनरी खरीदने की संभावनाएं तलाश रही है। अभी कंपनी की उत्पादन क्षमता 3.3 करोड़ टन प्रति वर्ष है और कंपनी की गुजरात में सालाना 2.7 करोड़ टन क्षमता वाली रिफाइनरी भी जल्द ही शुरू होने वाली है।
एस्सार ऑयल भी इस मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहना चाहती है। इसलिए कंपनी अपनी रिफाइनरी की क्षमता को 1.05 करोड़ टन से बढ़ाकर 3.4 करोड़ टन प्रति वर्ष करने की योजना बना रही है। कंपनी इस अतिरिक्त क्षमता को निर्यात करने की योजना बना रही है।नई रिफाइनरी स्थापित करने में होने वाली देरी के चलते वैश्विक रिफाइनिंग बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच अंतर बढ़ने से उत्पाद कीमतों में भी वृद्धि हुई है।
अर्नस्ट ऐंड यंग के कारोबारी सेवाओं के सलाहकार और पार्टनर अजय अरोड़ा ने बताया कि निकट भविष्य में भी इन कीमतों में कोई कमी आने की संभावना नहीं है। आने वाले पांच साल में भारतीय बाजार में इन उत्पादों की कीमतों में लगभग 250 से 320 रुपये प्रति बैरल तक की बढ़ोतरी संभव है। सिंगापुर में इस उत्पाद की कीमत प्रति बैरल 80 रुपये कम है। भारत में कीमत औसतन 280 से 320 रुपये तक है।
रिफाइनिंग उत्पादों की बढ़ती कीमतों के कारण भारतीय कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं को पूरा करने में जुट गई हैं। भारतीय कंपनियां साल 2010 तक समूचे विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग और आपूर्ति के अंतर को कम करने के लिए अगले पांच साल में लगभग 70,000 करोड़ रुपये खर्च करेंगी। मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 11.2 करोड़ टन का सालाना अंतर है।
पश्चिम एशिया में लगभग 10 करोड़ टन क्षमता की रिफाइनरी की स्थापना में हो रही देरी के कारण भी भारतीय कंपनियों के लिए संभावनाएं बढ़ रही हैं।
वैश्विक संभावनाएं
रिफाइनिंग कंपनियों के सूत्रों के अनुसार भारतीय रिफाइनरियों की क्षमता बढ़ने से पश्चिम एशिया में लगने वाली महंगी रिफाइनरियों की मांग अब कम हो गई है। पश्चिम एशिया में लगने वाली रिफाइनरियों के लिए उपकरणों की बढ़ती लागत के कारण भी इनके शुरू होने में देरी हो रही है।जानकारों के अनुसार पश्चिम एशिया में श्रमिकों पर होने वाला खर्च भारत की तुलना में लगभग दोगुना होता है।
चीन की रिफाइनरियों की कुल क्षमता लगभग 30 करोड़ टन प्रति वर्ष है। आने वाले दो-तीन साल में यह क्षमता लगभग 45 से 50 करोड़ टन प्रतिवर्ष हो जाने की संभावना है। इस बढ़ी क्षमता से स्थानीय मांग की आपूर्ति की जाएगी।पिछले पांच साल में पेट्रोलियम उत्पादों की वैश्विक मांग में लगभग 2.5 फीसदी की वृद्धि हुई है। जबकि रिफाइनिंग क्षमता में 0.7 फीसदी की मामूली वृद्धि ही हुई है। सख्त पर्यावरण कानूनों के चलते अमेरिका और यूरोप में पिछले 20 साल से एक भी रिफाइनरी नहीं लगाई है।
रिलायंस 3.3 करोड़ टन की क्षमता वाली रिफाइनरी को पूरी तरह निर्यात केंद्रित करना चाहती है। एक नई रिफाइनरी के प्रबंध निदेशक ने बताया कि रिलायंस और एस्सार जैसी कंपनियां क्षमता को निर्यात करने के उद्देश्य से बढ़ा रही हैं। इससे बाकी कंपनियों को घरेलू बाजार की बढ़ती मांग को पूरा करने का अवसर मिलेगा।