भारत में बियर बनाने वाली कंपनियां खुदरा बाजार में बिक्री बढ़ाने के लिए आकर्षक पैकेजिंग की जरूरत को समझने लगे हैं। इसके लिए भारतीय कंपनियां यहां के बाजार में बियर कैन्स पेश करने की योजना बना रही हैं।
कोबरा बीयर के मालिक करण बिलिमोरिया ने बताया कि उनकी कंपनी इस साल 500 मिलीलीटर के कैन्स में बीयर बाजार में उतारने वाली है। हालांकि उनका मानना है कि ये कैन्स निर्यात करने के लिए भी उपयुक्त रहेंगे। उन्होंने बताया, ‘मुझे बियर कैन्स के बाजार में काफी संभावनाएं नजर आती हैं। इससे हमें अपने ब्रांड को विदेशों में भी निर्यात करने में मदद मिलेगी।’
कंपनी के पास बिहार स्थित ब्रेवरी में बियर को कैन्स में पैक करने के लिए सभी बुनियादी सुविधाएं पहले से ही हैं। हो सकता है कि कंपनी की 9 ब्रेवरीज इकाइयों में से ज्यादातर में बीयर कैन्स में ही पैक हो। भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात केंद्र बनाने के लिए कैन्ड बियर को बाजार में उताराना जरूरी था। बिलिमोरिया ने कहा, ‘हम दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के बाजार में भी बियर का निर्यात कर सकते हैं।’
टाइगर बियर बनाने वाली कंपनी एशिया-पैसिफिक ब्रेवरीज लिमिटेड भी अगले साल बियर के कैन्स बाजार में उतारने की योजना बना रही है। एशिया-पैसिफिक ब्रेवरीज के क्षेत्रीय निदेशक (दक्षिण एशिया) विवेक छाबड़ा ने बताया, ‘बियर को कैन्स में पेश करना इस क्षेत्र के विकास के लिए सबसे जरूरी है। अभी हम बियर कैन्स के निर्माण में लगने वाली लागत का आकलन कर रहे हैं और उम्मीद है कि अगले साल तक हम कैन्ड बियर बाजार में पेश कर देंगे।’
भारतीय बियर बाजार की दिग्गज कंपनी युनाइटेड ब्रेवरीज पहले से ही बीयर कै न्स के बाजार में हैं। युनाइटेड ब्रेवरीज की सहायक कंपनी एसएबी मिलर के निदेशक (कॉर्पोरेट मामले और कम्युनिकेशंस) सुदीप कुमार ने कहा, ‘हम कुछ दिन पहले से ही कैन्ड बियर के बाजार में आये हैं। उपभोक्ताओं की जीवनशैली और बेहतर होने के कारण हमारी बिक्री में भी काफी इजाफा हुआ है। ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए पैकेजिंग बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।’
पिछले कुछ साल में कैन्ड बियर श्रेणी का काफी तेजी से विकास हुआ है। साल 2007-08 में इस क्षेत्र में लगभग 50 फीसदी की दर से विकास हुआ है और कुल राजस्व में इसका हिस्सा लगभग 10 फीसदी रहा है। उद्योग सूत्रों के मुताबिक अभी तक कैन्स सिर्फ पश्चिम और उत्तरी क्षेत्र में ही पसंद किये जाते थे लेकिन अब दक्षिण में भी इनकी मांग बढ़ रही है।
युनाइटेड ब्रेवरीज लिमिटेड (यूबीएल) के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक कल्याण गांगुली ने कहा, ‘इस क्षेत्र में हमें विकास की काफी संभावनाएं नजर आ रही हैं और यह अगले काफी सालों तक रहने वाला है। अगले कुछ साल में हम अपनी क्षमता का विस्तार करने की भी योजना बना रहे हैं। घरेलू बाजार में कैन्ड बियर की खपत निर्यात से काफी ज्यादा है।’ अभी यूबीएल और एसएबीमिलर दोनों ही इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी हैं और दोनों के ही भारत में तीन -तीन संयंत्र हैं।
औसतन एक कैन्ड बियर बनाने वाले संयंत्र स्थापित करने के लिए लगभग 1 करोड़ रुपये का खर्च आता है। अभी तक भारतीय बाजार में कैन की पैकेजिंग के लिए सामान का आयात किया जाता था। लेकिन इस क्षेत्र में तीन नए खिलाडियों के आने से अब कैन्स के निर्माण के लिए भारत से ही सामान का इस्तेमाल किया जाए। इससे कैन्स बनाने की औसत कीमत में भी कमी आएगी। भारत में कैन्ड बियर के नए संयंत्र लगने के बाद कैन्ड बियर की कीमत में भी कमी होने की पूरी उम्मीद है।